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विज्ञान के संदर्भ में जैन जीवन-शैली
१९५ हुई है। इन खोजों में तीनों शक्तियों की बात निर्णीत हुई है। तीनों बातें जुड़ी हुई मिलती हैं। पहली बात है भावना। दूसरी बात है उच्चारण और तीसरी बात है उच्चारण के द्वारा उत्पन्न वाणी की शक्ति। उच्चारण के साथ-साथ मस्तिष्क में तरंग पैदा होती है। एक शब्द का उच्चारण होता है और अल्फा-तरंगें पैदा हो जाती है, एक शब्द का उच्चारण होता है और थेटा तरंगें पैदा हो जाती है, बीटा तरंगें पैदा हो जाती हैं। इन तरंगों के आधार पर मंत्रों की कसौटी की जाती है। 'ओम्' का उच्चारण होता है, अल्फा तरंगें पैदा होती हैं और मस्तिष्क रिलैक्स हो जाता है, शिथिल हो जाता है। जैसे-जैसे मस्तिष्क की शिथिलता बढ़ती है, अल्फा-तरंगें पैदा होती चली जाती हैं। शिथिलन के लिए यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है। जितने भी बीज-मंत्र हैं, उनसे भिन्न-भिन्न तरंगें उत्पन्न होती हैं और वे मस्तिष्क को प्रभावित करती हैं। बीजाक्षर हैं- अ, सि, आ, उ, सा, अर्ह, ओम्, ही, श्रीं, क्लीं। ये सारे बीज-मंत्र हैं। इनसे उत्पन्न तरंगें ग्रन्थि-संस्थान को प्रभावित करती हैं, अन्त:सावी ग्रन्थियों के स्राव को संतुलित करती हैं। ग्रन्थियों का स्त्राव हृ' के उच्चारण से संतुलित हो जाता हैं।
प्रश्न है. वाणी की शक्ति का विकास कैसे हो? उसी अशुद्धि को मिटाने का एक उपाय है-'प्रलम्बनादाभ्यासाद् वाक्य-शुद्धि:'-प्रलंब नाद के अभ्यास से वाक्य शुद्धि होती है। ध्वनि प्रलंब है। मन के साथ, भावना के साथ सम्बन्ध स्थापित करने के लिए प्रलंबनाद का अभ्यास महत्त्वपूर्ण होता है। यह उच्चारण का एक प्रकार है। उच्चारण अनेक प्रकार के होते हैं-उदात्त, अनुदात्त, स्वरित, इस्व, दीर्घ प्लुत आदि। मंत्रशास्त्र में इस्वोच्चारण का एक प्रकार का लाभ होता है, दीर्घोच्चारण का दूसरे प्रकार का लाभ होता है और प्लुतो उच्चारण का भिन्न प्रकार का लाभ होता है। उच्चारण जितना लम्बा होता है, ऊर्जा उसी के अनुपात में निर्मित होती है और मन के साथ उसका सम्बन्ध स्थापित होता है। अर्ह और ओम् का लम्बा उच्चारण होता है। सामवेद में अनेक प्रकार की उच्चारण-पद्धतियों का महत्त्वपूर्ण उल्लेख है। उच्चारण के आधार पर एक-एक मंत्र की हजार-हजार शाखाएं हो जाती हैं।
वाणी और शब्दों का संयोजन और उच्चारण हमारी भावना को प्रभावित करता है।
वाक्यशुद्धि का दूसरा उपाय है-सत्य का आलम्बन । उच्चारण का विवेक कर लिया, तरंगों को भी समझ लिया, किन्तु उसके पीछे भावना का जो बल है वह यदि असत् है, असत्य है तो सब कुछ बिगड़ जाएगा। वचन-सिद्धि का सबसे बड़ा साधन है-सत्य। जो सत्यवादी होता है, उसके कथन को कोई बदल नहीं सकता। उसके कथन को कोई अन्यथा नहीं कर सकता। उसकी वाणी की तरंगों में.
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