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________________ जैन दर्शन और विज्ञान (५) भाषा-विवेक भाषा-विवेक जैन जीवन-शैली के साथ जुड़ा हुआ एक ऐसा बिन्दु है, जो अध्यात्म-साधना, व्यावहारिक जीवन एवं व्यक्तित्व-निर्माण-इन तीनों दृष्टियों से बहुत महत्त्वपूर्ण है। भाषा का सीधा सम्बन्ध शब्द से है और शब्द एक ऐसा भौतिक अस्तित्व है जिस पर आधुनिक विज्ञान के क्षेत्र में बहुत सूक्ष्मता से प्रयोग एवं परीक्षण हुए हैं। प्रस्तुत प्रकरण में भाषा-विवेक पर तीन दृष्टिकोणों से विचार करना है १. साधना में भाषा-विवेक २. व्यवहारमें भाषा-विवेक ३. शक्ति के स्रोत रूप शब्द (भाषा) की मीमांसा इन तीनों पर जैन दर्शन और विज्ञान के संदर्भ में हमें चर्चा करनी है। शब्द भी : मौन भी भगवान महावीर शब्द और मौन दोनों को स्वीकार करते हैं और दोनों से ही इनकार करते हैं। वास्तव में महावीर की हर बात अनेकांतवादी है। उनके हिसाब से प्रतिबन्धक शब्द नहीं, राग-द्वेष है। राग-द्वेषमुक्त शब्द प्रतिबन्धक नहीं, विमोचक है। वास्तव में वही शब्द विमोचक है जो मौन से जुड़ा हुआ है। इसीलिए भगवान महावीर ने स्वयं साढ़े बारह वर्षों तक मौन की साधना की। यदि मौन ही अन्तिम बात होती तो फिर वे प्रवचन नहीं करते। वास्तव में 'अवचन' की साधना से ही वचन 'प्रवचन' बन सकता है। इससे स्पष्ट है कि वचन के लिए 'अवचन' की भूमिका आवश्यक है। वाणी की शक्ति वाणी एक ऐसी शक्ति है जो एक ओर मन का प्रतिनिधित्व करती है तो दूसरी ओर शरीर को उछालती है। आदमी किसी से लड़ता है तो वाणी के द्वारा लड़ता है। आदमी किसी से प्रेम करता है तो वाणी के द्वारा करता है। आदमी किसी को अपना बनाता है तो वाणी के द्वारा ही बनाता है। आदमी किसी को विरोधी बनाता है तो वाणी के द्वारा ही बनाता है। वाणी की बहुत बड़ी शक्ति है। मुंह से एक बात निकलती है और सामने वाले व्यक्तियों को चाहे सो बना देती है। वाणी की एक ऐसी शक्ति है भावना और दूसरी शक्ति है उच्चारण । उच्चारण के आधार पर ही समूचे मंत्र-शास्त्र का विकास हुआ है। तरंग का सिद्धांत भी इसके साथ जुड़ता है। आज वाणी पर आधुनिक खोजें हुई हैं, मंत्रशास्त्रीय खोजें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
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