SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 207
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९२ जैन दर्शन और विज्ञान कभी-कभी पीने से शुरू किया होगा। प्रारम्भ में उन्होंने यही सोचा होगा कि सीमित मात्रा में शराब पीते हैं या कभी-कभार पीते हैं। पर धीरे-धीरे उनके शरीर का ढांचा ही ऐसा बन जाता है कि वे पेय बिना रह ही नहीं सकते। वैज्ञानिक साक्ष्य इस बात का समर्थन करती है कि कार-दुर्घटनाओं में अधिकांश का निमित मद्यपान है। यातायात दुर्घटनाओं में ५१ प्रतिशत का सम्बन्ध शराब पिए हुए चालाकों या परिचालकों से है। ड्राइवर के द्वारा मद्यपान करने पर उसके मस्तिष्क पर शराब का दुष्प्रभाव पड़ता है जिससे वह सही ढंग से समन्वयन, निर्णायकता और प्रतिवर्ष सहज क्रिया (reflex action) करने में अक्षम हो जाता है। शराब पीने का प्रभाव ही यह होता है कि आदमी की नियंत्रण-शक्ति चेतनाशून्य हो जाती है और वह अच्छे-बुरे में भेद नहीं कर सकता। रक्त की धारा के माध्यम से जब शराब एक बार मस्तिष्क में प्रविष्ट हो जाती है तो उसका प्रभाव आत्म-नियंत्रण तथा निर्णय लेने की शक्ति पर हावी हो जाता है। इसलिए सीमित मद्यसारयुक्त पेयों का प्रयोग मात्र छलनामय सिद्धांत है। सीमित मात्रा में मद्यपान ही कभी न बुझने वाली शराब की शुरूआत देता है। इस दृष्टि से हल्की नशीली शराब का सेवन भी मद्यसार की आदत का निमणि कर देता है। इसलिए इस दिशा में बहुत सावधानी रखने की आवश्यकता है। शरीर-शक्ति के लिए शराब का प्रयोग करना न तो बुद्धिमानी है और न यह पौष्टिक खाद्य पदार्थ का स्थान ले सकती है। अल्कोहल में कैलोरीज तो होती है पर वह विटामिन, प्रोटीन, लोहा आदि पौष्टिक पदार्थों का स्थान नहीं ले सकती। वह तो बस एक चाबुक मात्र है। ___ यदि हम थोड़ी-सी आंखें उठाकर देखें तो हमें अपने आस-पास ऐसे अनेक उदाहरण मिल जायेंगे जिनके कारण परिबार का परिवा क्षत-विक्षत हो जाता है। न्यायाधीश ए. ए. डावसन (टैक्सास) के आकलन के अनुसार यदि मादक शराब का पीना बन्द हो जाये तो दो-तिहाई न्यायालय समाप्त हो जाएं। इसके साथ-साथ वर्तमान कानूनों को लागू करने में जितनी राशि खर्च होती है उसमें भी ८५ प्रतिशत की बचत हो सकती है। आज करोड़ों-अरबों रुपये उन लोगों पर खर्च किए जाते हैं जो मद्यपान की चपेट में आ जाते हैं। अकेले अमेरिका में २१ वर्ष की अवस्था से ऊपर के अपराधियों पर २९ मिलियन डालर खर्च होता है; जबकि इन अपराधों में अधिकांश के मूल में शराब ही होती है। कुछ लोगों का तर्क है कि शराब पीना उनका अपना व्यक्तिगत मामला है। पर एक व्यक्ति का आचरण जब समाज को प्रभावित करने लग जाता है तो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy