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________________ विज्ञान के संदर्भ में जैन जीवन-शैली १८९ ___ शराब शरीर और मन पर कितने भयंकर प्रभाव डालती है, इसकी जानकारी के लिए चिकित्सा-व्यवस्था में लगे लोगों, वैज्ञानिकों, मनोवैज्ञानिकों, मनोरोग-विशेषज्ञों, शरीरक्रिया एवं औषधि विज्ञान-वेत्ताओं की राय महत्त्वपूर्ण होती है। इस दृष्टि से अमेरिका में आयोजित मानस-चिकित्सक और नाड़ी-तन्त्र विशेषज्ञों के राष्ट्रीय सम्मेलन का प्रस्ताव अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। उन्होंने कहा है-इस सम्मेलन की सम्मति में यह निश्चित रूप से सिद्ध हो चुका है कि शरीर के भीतर ली गयी शराब मस्तिष्क और अन्य तन्तुओं के लिए विष के रूप में काम करती है। इसके प्रभाव से प्रत्यक्ष रूप से पागलपन, मुगी, मन की दुर्बलता और अन्य इसी प्रकार की अनेक मानसिक बीमारियां आती हैं। ___ स्ट्रासबर्ग में आयोजित इण्टरनेशनल फिजीओलॉजिकल कांग्रेस में औषधि-निर्माण विभाग के डाक्टर ओटटों श्मेइदरवर्ग ने अपने निबन्ध में कहा था-शराब क्लोरोफार्म और ईथर की तरह अवसादक है। इसके सम्पर्क से व्यक्ति के शरीर के प्रत्येक तन्तु की शक्ति निर्बल हो जाती है। ___ इंग्लैण्ड में पागलपन पर नियुक्तक मीशन की रिपोर्ट में कहा गया है कि पागलपन के विषाक्त कारण की सूची में शराब मुख्य है। सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के सर्जन जनरल डाक्टर थॉमस पाईन ने भी कहा है-पागलपन का मुख्य कारण शराब है। अल्कोहल एण्ड अल्कोहलिज्म पुस्तक के पृष्ठ १४ पर लिखा है-अत्यधिक शराब पीने की वजह से प्रतिवर्ष कई मिलियन डालर खर्च हो जाते है। मानवीय कष्ट का मूल्य तो किसी प्रकार नहीं आंका जा सकता। ह्विस्की, ब्रांडी आदि शराब सम्बन्धी विशेष काढ़े हुए पेय जब पेट में डाले जाते हैं तब जिगर, छोटी आंत और छोटी नसों द्वारा मद्यसार शीघ्रता से रक्त की सहायता से शरीर के सब भागों में पहुंच जाता है। मुश्किल से ही कोई शराब बड़ी अंतड़ियों तक पहुंचती है। भोजन-रहित पेट में अंतड़ियों द्वारा मद्यसार को शीघ्रता से अपने में खपा लेना असाधारण गति से होता है। १० से ३० मिनट के भीतर यह रक्त में उच्चस्तर तक पहुंचती जाती है। जिस मात्रा में शराब ली जाती है उसी मात्रा में उसका परिणाम और यह हानि पहुंचाती है। प्रबल शराब का पेट के साथ सम्पर्क होने से वहां सूजन हो जाती है, जिससे पाचक-यन्त्रों को स्थायी रूप से हानि होती है। यह एक प्रकार का प्रवाहशील विष है जो जिगर, दिल और गुर्दो को क्षति पहुंचाता है। इससे पेट में दीर्घकालीन सूजन हो जाती है। शराब का पेट पर जो सीधा उत्तेजक प्रभाव पड़ता है वह मुख्यत: रक्त के जमा और संकुचित हो जाने का है। कभी-कभी इससे पेट में फोड़े हो जाते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
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