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________________ १८८ जैन दर्शन और विज्ञान तभी वह बच्चे के उस अतिरिक्त अल्कोहल को वापस ले सकेगी। अत: मां यदि २८ मि. ली. से अधिक शराब पीती है तो असहाय बच्चे को अति दीर्घकाल तक उसे अपने रक्त में रोके रखना पड़ता है। पर मां यदि पीती ही जाए, तो बच्चे में बड़ी तीव्र प्रतिक्रिया निश्चय ही होगी। __ अभी तक यह बताना कठिन है कि किस काल में गर्भावस्था में शराब का दुष्प्रभाव सबसे अधिक होता है। पर इतना निश्चित है कि यदि मां की इच्छा हो कि उसका बच्चा स्वस्थ हो, उसका कद छोटा न हो, चेहार विकृत न हो, आंखें छोटी न हो, नाक का ऊपरी हिस्सा दबा हुआ न हो, हृदय तथा फुफ्फुस निर्दोष हो, हाथ-पैर कुरूप न हों, मस्तिष्क अधिक मोटा न हो, उसे रक्तचाप न हो, स्नायु-दुर्बलता न हो तो उसे शराब से दूर से ही नमस्कार करना चाहिए। इतना ही नहीं, मद्यपायी माताओं के बच्चे प्राय: मर जाते हैं। जीवित रह जाएं तो उनका वजन कम होता है। मद्यपान और बाल-अपराध मैके, ब्लैकर, डेमोन और कैले ने अपने-अपने अध्ययन से यह निष्कर्ष निकाला है कि बाल-अपराधों और सुरापान का गहन सम्बन्ध है। १९६५ में कैलिफोर्निया के राजकीय बाल-सुधारगृहों में प्रविष्ट ६०,१४७ बालकों का अध्ययन कर श्री रिचार्ड ने पता लगाया है कि उनमें से २० प्रतिशत का अपराधों से सम्बन्ध रहा है। उनमें से अनेक मद्यपान के आदि थे। १८ अप्रैल १९६८ के रूस के प्रमुख समाचार-पत्र 'प्रवादा' से पता लगता है कि रूस में भी बच्चों में मद्यपान की आदत बढ़ रही है। १४ से १६ वर्ष की आयु के अनेक किशोरों द्वारा किये गये अपराधों का एकमात्र कारण शराब पीना ही था। उसे पीने के लिए उन्होंने चोरी की और पुन: पीने के लिए पुन: चोरी करनी पड़ी। फिर तो उनके जीवन में यह एक चक्र ही बन गया। लिसन' पत्रिका के सम्पादक जे. ए. वकवाल्टर ने वाशिंगटन राजकीय पन्टिशियरी में रखे गये २०० बच्चों का अध्ययन कर यह निष्कर्ष निकाला है कि उनमें १८९ मद्यपायी थे। शराब और स्वास्थय एक बार हम दर्शन और तर्क को छोड़ दें, नैतिकता और समाज-व्यवस्था को भी भूल जायें तो भी शराब मनुष्य के स्वयं के स्वास्थ्य के लिए कितनी भयानक है, इस पर जरा ध्यान दें। स्वास्थ्य-समस्याओं में हृदय-रोग और कैंसर के बाद तीसरा स्थान शराब के दुर्व्यसन का है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
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