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विज्ञान के संदर्भ में जैन जीवन-शैली
१८३ ० स्वयं को याद दिलाइये कि यह आप के आत्म-विश्वास की परीक्षा का
समय है। ० अपने को अधिक से अधिक व्यस्त रखिए। ० मुंह में इलायची या सौंफ रखिए। ० लम्बे, गहरे श्वांस अन्दर-बाहर लेकर एकाग्रता से मन ही मन दोहराइए, "मैं कभी तम्बाकू सेवन नहीं करूंगा, जर्दा-धूम्रपान नहीं लूंगा।'' इससे मनोबल को दृढ़ता मिलती है। प्रेक्षाध्यान के प्रयोग से भी जर्दा-धूम्रपान छोड़ने से होने वाली व्याकुलता पर नियंत्रण किया जा सकता है। ० विचार कीजिए-कुछ लोग महिनों तक उपवास रख लेते हैं, कई दिन
खाए-पीए निकाल देते हैं, क्या मैं उनसे कमजोर हूं? ० जब भी जर्दा-बीड़ी, सिगरेट या तम्बाकू देखें, अपने बच्चों को याद
कीजिए क्योंकि तम्बाक आपके बच्चों से उनके पिता को हमेशा के लिए
छीन सकती है।
बीड़ी या सिगरेट का हर कश निकोटीन की मात्रा दिमाग में पहुंचाता है, जिससे दिमाग की कोशिकाएं निकोटीन के प्रभाव में आती हैं और लगातार सेवन के बाद निकोटीन दास हो जाती हैं। क्या आप अपने दिमाग को निकोटीन की गुलामी में रखना पसन्द करेंगे? क्या आप का आत्मबल और स्वाभिमान मजबूत नही कि इस गुलामी को छोड़ सकें?
(४) मद्यपान-वर्जन मद्यपान और मांसाहार का भगवान महावीर तीव्र प्रतिरोध करते हैं। वह केवल अहिंसा की दृष्टि से ही नहीं अपितु उससे मनुष्य की वृत्तियां भी बिगड़ती हैं।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि आज ये प्रवृतियां बढ़ रही हैं, पर जिस मात्रा में ये प्रवृतियां बढ़ रही हैं उसी मात्रा में समस्याएं भी बढ़ रही हैं। दी ओहिया स्टेट युनिवर्सिटी के श्री वॉल्टर सी. रेक्लेस ने अपनी पुस्तक 'The Crime Problem' में मद्यपान पर सांगोपांग अध्ययन प्रस्तुत किया है। उन्होंने कहा-अपराध से तीन बातें मुख्य रूप से जुड़ी हुई हैं-शराब पीना, नशीली दवाइयां लेना तथा अस्वाभाविक यौन-भावना। इसके साथ वेश्या-गमन, जुआ, परिवार का बिखराव, गर्भपात, भिखारीपन आदि अनेक समस्याएं जुड़ी हुई हैं, पर कदाचित् शराब इन सारी समस्याओं से प्रमुख रूप से जुड़ी हुई है।
यद्यपि यह तो सम्भावना नहीं है कि अपराध के लिए केवल शराब को ही उत्तरदायी ठहरा दिया जाए। पर फिर भी उसमें शराब का एक महत्त्वपूर्ण भाग है,
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