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________________ १७८ हत्या का प्रचलित तरीका धूम्रपान अनुमानत: भारत में प्रतिदिन २०० लोगों की मृत्यु धूम्रपान करने वाले दोस्तों या स्वजनों के सान्निध्य में रहने की वजह से उनके द्वारा छोड़े गए धुएं से हुई बीमारियों से होती है । एक प्रकार से इन्हें धूम्रपान करने वाले स्वजनों द्वारा की गई हत्याएं ही कहा जाना चाहिए। धूम्रपान करने वाले दोस्तों या परिवारजनों के सान्निध्य में रहने वाले स्वस्थ व्यक्तियों के फेफड़े की क्षमता २० - २५ प्रतिशत तक घट जाती है और यदि फेफड़े पहले से ही कमजोर हैं तो बीमारी अधिक घातक होती है । सिगरेट का साइड स्ट्रीम धुंआ तथा धूम्रपान के दौरान मुंह से निकला धुंआ दोनों में ही टार की मात्रा इतनी होती है, जो कि अगल-बगल बैठे व्यक्तियों में कैंसर पैदा कर सकती है। इसी प्रकार धूम्रपान करने वाले व्यक्ति के सान्निध्य में रहने से हृदय रोग की संभावना बढ़ जाती है । अतः सिर्फ यही जरूरी नहीं है कि आप स्वयं धूम्रपान न करें, बल्कि निकट रहने वाले व्यक्ति को धूम्रपान न करना भी उतना ही आवश्यक है । आत्म-निरीक्षण जैन दर्शन और विज्ञान पिछले चालीस वर्षों में संसार में मौत का ताण्डव करने वाली ऐसी क्या चीज धूम्रपान में? है लगभग ४,००० प्रकार के तत्त्व सिगरेट के धुएं में पाए गए हैं जिनमें से निकोटीन नामक तत्त्व नितांत खतरनाक होता है। इसके घातक प्रभाव के कारण इसे बहुत सी कीटनाशक दवाओं में काम में लिया जाता है। लगातार सेवन करने पर यह हृदय तथा अन्य अंगों पर कुप्रभाव डालता है। समय के साथ यह हृदय की धमनियों में मोम जैसा जमाव पैदा कर देता है, जिससे धीरे-धीरे ये धमनियां बन्द होती जाती हैं । परिणामस्वरूप ऐसे व्यक्तियों को हृदय रोग हो जाता है। पेट में अल्सर भी हो सकता है। धूम्रपान एक प्रकार से अपने ही शरीर के अंगों से की गई क्रूर हिंसा के समान है। फेफड़े के ऊतक बीड़ी-सिगरेट के धुएं में घुट कर नष्ट हो जाते है । जो बचते है उन पर घाव हो जाते हैं और कालिख जमती जाती है। जिस प्रकार लकड़ी जलाने वाले चूल्हे की रसोई में २०-२५ साल में कालिख की मोटी परत जम जाती है, उसी प्रकार फेफड़ों में भी सिगरेट-बीड़ी के धुंएं से कालिख जम जाती है जो वातावरण से ली गयी ऑक्सीजन के फेफड़ों द्वारा शरीर में प्रवेश के छिद्र बन्द कर देती है तथा फेफड़ों में नाजुक उत्तक जल कर नष्ट हो जाते है । इस अवस्था में रोगी को श्वास लेने में कठिनाई होने लगती है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
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