SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 19
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन दर्शन और विज्ञान समाधान सम्यक् ज्ञान के रूप में होता है वह 'विज्ञान' की संज्ञा को प्राप्त कर लेता है ।' डूरण्ट के इस कथन से स्पष्ट हो जाता है कि दर्शन किसी भी रूप में विज्ञान से निम्न नहीं है । ४ विज्ञान को दर्शन से अधिक पूर्ण बताने वाले अधिकांशतया यह तर्क उपस्थित करते हैं कि केवल कल्पना पर आधारित होने के कारण दर्शन का प्रामाण्य संदिग्ध है, जबकि विज्ञान निरीक्षण और परीक्षण पर आधारित होने के कारण अधिक प्रामाणिक है। यह बात सत्य है कि आज के युग में विज्ञान ने अभियान्त्रिकी (Engineering) और प्रौद्योगिकी (Technology) के क्षेत्रों में अभूतपूर्व सफलता पाकर, ज्ञान की अन्य शाखाओं को बहुत पीछे रख दिया है। इस सफलता ने मनुष्य के मस्तिष्क में विज्ञान के प्रति सम्मान और हृदय में उसके प्रति श्रद्धा उत्पन्न कर दी है। अधिकांश लोग यह मानते हैं कि जो कुछ भी विज्ञान द्वारा घोषित होता है, वह 'अन्तिम सत्य' का उच्चारण है । क्या वैज्ञानिक सिद्धान्त अन्तिम सत्य का उच्चारण है? किन्तु सामान्यतया लोग सैद्धांतिक (वैचारिक) विज्ञान और व्यावहारिक (प्रायोगिक) विज्ञान के बीच जो अन्तर है, उसे परख नहीं पाते । यद्यपि यह सत्य है कि विज्ञान का व्यावहारिक पक्ष सैद्धांतिक पक्ष से निकटतया सम्बन्धित है, फिर भी इनके प्रामाण्य के विषय में मूलभूत अन्तर भी है। वस्तुत: यह निश्चित रूप से माना गया है कि' प्रायोगिक विज्ञान के तथ्य विज्ञान के वैचारिक पक्ष को सूचित नहीं करते । अतः अभियांत्रिकी और तकनीकी क्षेत्र में विज्ञान की अद्वितीय सफलता होते हुए भी 'वैज्ञानिक नियम' अथवा 'वैज्ञानिक सिद्धांत' अन्तिम सत्य का उच्चारण है, ऐसा नहीं माना जा सकता। इसका कारण यही है कि सामान्य मनुष्य वैज्ञानिक सिद्धांतो को जितना वास्तविक मानता है उससे अधिक वे काल्पनिक हैं । यह बात एफ. एस. सी. नोर्थरोप (F.S.C.Northrop) के इन शब्दों में स्पष्ट रूप से व्यक्त हुई हैं : विधानात्मक शब्दों में हम इसे प्रकार कह सकते हैं कि भौतिक विज्ञान के सिद्धांत, प्रायोगिक तथ्यों का वर्णन मात्र नहीं है; और न इस वर्णन के आधार पर किया वाला अनुमान है। किन्तु जैसे आइंस्टीन ने जोर देकर कहा है, भौतिक विज्ञानवेत्ता अपने सिद्धांत का निर्णय काल्पनिक आधारों पर करता है । उसके आनुमानिक निर्णयों में तथ्य साधन और काल्पनिक सिद्धांत साध्य नहीं होते, आनुमानिक निर्णयों में तथ्यों १. देखें, फिजिक्स एण्ड फिलोसोफी, ले० डबल्यु० हाईजनबर्ग, पर एफ० एस० सी० नोर्थरोप द्वारा लिखित इन्ट्रोडक्शन, पृ. १४ । २. वही, पृ. १३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy