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दर्शन और विज्ञान विज्ञान बौद्धिक शक्ति पर। दर्शन 'तर्क' को कसौटी मानकर चलता है, जबकि विज्ञान तर्क के साथ प्रयोग को भी। विज्ञान और दर्शन की इस भिन्नता के होते हुए भी, कभी-कभी ये एक दूसरे के बहुत निकट आ जाते हैं--यहां तक कि एक दूसरे में घुल-मिल जाते हैं। इसीलिए सुप्रसिद्ध ब्रिटिश वैज्ञानिक सर जेम्स जीन्स (Sir James Jeans) अपनी एक पुस्तक में लिखते है । : भौतिक विज्ञान और दर्शन की सीमा-रेखा, एक प्रकार के निरर्थक हो चुकी थी; पर सैद्धान्तिक भौतिक-विज्ञान के निकटभूत में होने वाले विकास के कारण अब वही सीमारेखा महत्त्वपूर्ण और आकर्षक बन गई है। दर्शन और विज्ञान के इस सन्निकर्ष का कारण यह है कि इनका उद्गम-स्थान एक ही है।' कभी-कभी वैज्ञानिक सिद्धान्तों का आविष्कार वैज्ञानिक के अन्तर्ज्ञान से स्फुरित होता है। तब वैज्ञानिक' भी ‘दार्शनिक' बन जाता है-ऐसी स्थितियों में दर्शन और विज्ञान का सुभग मिलन हो जाता है। विज्ञान के इतिहास में ऐसे उदाहरणों की अल्पता नहीं है, जहां विज्ञान सिद्धांतों का वृक्ष दर्शन-बीज से जन्म लेता हो। दर्शन के सुख्यात इतिहासकार विल डूरण्ट (Will Durant) ने सही लिखा है :२ “प्रत्येक विज्ञान का प्रारम्भ दर्शन से होता है और अन्त कला में; वह उपकल्पना' से जन्म लेता है और 'सिद्धांत' के रूप में परिणित हो जाता है। दर्शन अज्ञान का उपकल्पित प्रतिपादन है (जैसे-तत्त्वदर्शन में), अथवा अपूर्णतया ज्ञात का (जैसे-नितीदर्शन ओर राजनीति दर्शन में)। दर्शन सत्य के घेरे में प्रथम 'दरार' है। विज्ञान एक सीमित भूमि है; उसकी पृष्ठभूमि में वह प्रदेश है, जहां ज्ञान और कला द्वारा सृष्टि की रचना होती है। किन्तु दर्शन जनक की तरह सदा ही व्यथित-सा दिखाई देता है। वह व्यथित इसलिए है कि विजय का श्रेय सदा वह अपने संतानों-विज्ञानों को देकर, स्वयं अज्ञात और अविहरित प्रदेश में नई खोज के लिए भटकता रहता है।"
कुछ विचारक विज्ञान और दर्शन की तुलना करते समय विज्ञान को 'दर्शन' से अधिक पूर्ण बताते हैं। किन्तु यह अभिप्राय सत्य नहीं लगता। यह नि:सन्देह कहा जा सकता है कि दर्शन का स्थान विज्ञान से नीचा नहीं है। बल्कि दर्शन विज्ञान से अधिक साहसिक है। जैसे कि विल डूरण्ट ने एक स्थान में लिखा है :३ प्राय ऐसा प्रतीत होता है कि विज्ञान की जीत होती है और दर्शन की हार। किन्तु इसका कारण यही है कि दर्शन उन समस्याओं को सुलझाने का दुरूह मार्ग अपनाता है, जो विज्ञान की पहुंच से बाहर है। जैसे--पुण्य और पाप, सौन्दर्य और विद्रूपता, व्यवस्था और अव्यवस्था, जन्म और मृत्यु की समस्याएं। जैसे ही जिज्ञासा का १. फिजिक्स एण्ड फिलोसफी के प्रिफेस से। २. दी स्टोरी ऑफ फिलोसोफी, पृ० २ । ३. वही, पृ० २।
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