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________________ विज्ञान के संदर्भ में जैन जीवन-शैली १७३ सबसे बड़ा दुष्परिणाम है-फेफड़ों का कैंसर। यह एक असाध्य और बहुधा घातक बीमारी है। यह बीमारी नहीं पीने वालों की अपेक्षा पीने वालों में २० गुणा अधिक व्याप्त है। कैंसर की बीमारी विषाक्त कोशिकाएं वृद्धिंगत होती हुई स्वस्थ कोशिकाओं को नष्ट कर देती हैं और अन्तोगत्वा ऊतकों को भी। एम्फीजीमा (वातस्फीति) की बीमारी में श्वास-प्रकोष्ठों (अल्वीओली) का रोगात्मक विस्तार होता है। बहुत सारी श्वसनिकांए एक साथ अवरुद्ध हो जाती हैं। श्वास -प्रकोष्ठों की दीवारें पतली होकर क्षीण हो जाती हैं। जिससे श्वसन-तंत्र की समग्र उपयोगी सतह के क्षेत्रफल में भारी गिरावट आ जाती है। सारी परिस्थितियां अपुनरावर्तनीय है। अन्ततोगत्वा ऑक्सीजन की कमी तथा कर्बन-डाइआक्साइउड की वृद्धि निरन्तर बनी रहती है, जिससे मृत्यु तक हो सकती है। अब धूम्रपान ने केवल फेफड़ों के कैंसर का प्रमुख कारण माना जाता है अपितु स्वरयंत्र, मुख-गुहा तथा अन्न-नली के कैंसर का भी प्रमुख कारण माना जाता है। तथा साथ ही मूत्राशय, अग्न्याशय (क्लोमग्रंन्थि) और गुर्दे के कैंसर में भी सहयोगी कारण बनाता है। सिगरेट का धुआं श्वास-नलिका के अस्तर में रहे हुए सूक्ष्म बालों (रोमों) को आघात पहुचां कर संवेदन-शून्य कर देता है। जिससे वे धूलिकण-युक्त श्लेष्म को ऊपर धकेलने में अक्षम हो जाते हैं तथा उसे स्वरयंत्र द्वारा बाहर निकालने की क्रिया बंद हो जाती है। यदि धूम्रपान की आदत वाले व्यक्ति धूम्रपान छोड़ दें तो कुछ महिनों में ये बाल साफ-सूफी के कार्य के लिए पुन: सक्रिय बन जाते हैं। नशीले पदार्थों का सेवन तनाव-मुक्ति उत्तेजना या सुखाभास की तीव्रानुभूति (या मस्ती) के लिए नाना प्रकार के नशीले पदार्थों का नित्य सेवन करने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। दुर्भाग्य की बात है कि अब तक जितने नशीले औषध आविष्कृत हुए हैं, वे १. आधार : टाइम पत्रिका, मार्च १९८५; इसी पत्रिका में अमेरिका के सर्जन-जनरल सी० एवरेट कूप की इसी विषय की एक रिपोर्ट भी प्रकाशित है। इस रिपोर्ट में वे कहते हैं-हमारे युग की सार्वजनिक स्वास्थ्य से सम्बन्धित समस्याओं में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण समस्या धूम्रपान की है। उसकी रोकथाम भी की जा सकती है फिर भी हमारे समाज में मृत्यु का सबसे प्रमुख कारण धूम्रपान है। इस रिपोर्ट में आगे धूम्रपान न करने वालों को भी एक चेतावनी दी गई है कि उनको सिगरेट के धुएं से भरे कमरों में जाने से बचना चाहिए। क्योंकि कैंसरोत्पादक तत्त्व धूम्रपान करने वाले व्यक्ति के द्वारा कस लेने में जितनी मात्रा में भीतर जाते हैं उसकी अपेक्षा सुलगती सिगरेट के निकलते धुएं में अधिक मात्रा में विद्यमान होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
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