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________________ विज्ञान के संदर्भ में जैन जीवन-शैली १७१ अत: यह स्पष्ट है कि अंडों की अपेक्षा दालों व अनाज से बहुत कम खर्च में प्रोटीन व ऊर्जा प्राप्त होती है, इसके अतिरिक्त अन्य महत्त्वपूर्ण पदार्थ विटामिन्स, खनिज, फाइबर, कार्बोहाइड्रेट, इत्यादि अलग प्राप्त होते हैं जो मांसाहारी पदार्थों में प्राय: नहीं के बराबर हैं। आर्थिक दृष्टि से यह भी सारांश निकाला गया है कि मांस द्वारा एक किलोग्राम प्रोटीन प्राप्त करने के लिए पशु को ७ से ८ किलोग्राम तक प्रोटीन खिलाना पड़ता है। यह भी अनुमान लगाया गया है कि १ पशु-मांस-कैलोरी प्राप्त करने के लिए ७ वनस्पति-कैलोरी खर्च होती है। अमेरिका के कृषि विभाग ने जो आंकड़े बनाए हैं उससे पता लगता है कि जितनी भूमि एक औसत पशु को चराने के लिए चाहिए उतनी से औसत दर्जे के पांच परिवारों का काम चला सकता है। एक औसत अमरीकी करीब १२० किलो मांस प्रतिवर्ष खाता है; इसे प्राप्त करने के लिए करीब एक टन अनाज खर्च होता है। यदि वह सीधा १२० किलो अनाज खाए तो वर्ष भर आठ व्यक्तियों का कार्य चल सकता है। प्रोफेसर जार्ज बौर्गस्टौर्म के अनुमान के अनुसार केवल अमेरिका में पशु-जगत् जितनी वनस्पति-फूड खर्च करता है, उतनी ही विश्व की आधी आबादी पेट भर सकती है। गाय, बैल आदि पशुओं के गोबर से खाद, गैस ऊर्जा आदि की जो अतिरिक्त प्राप्ति होती है उन सबका यदि हिसाब लगाया जाए तो यह प्रकट होता है कि ऐसे पशुओं का वधकर हम उतना ही लाभ प्राप्त करते हैं जितना कोई चाय बनाने के लिए नोट जलाकर लाभ प्राप्त करे। नित्य एक सोने का अंडा देने वाली मुर्गी का पेट काटना समझदारी कभी नहीं है। बौम्बे ह्यू मैनिटेरियन लीग के आनरेरी सैक्रेटरी दशरथ भाई ठक्कर के अनुसार पशु-जगत् हमारी राष्ट्रीय सम्पदा में प्रतिवर्ष २५,५०० करोड़ रुपये दूध, खाद, ऊर्जा व भार उठाने की सेवा से अपना पसीना बहाकर हमारे राष्ट्र को देते हैं, इसके अतिरिक्त इनके मरने के उपरांत, इनका चमड़ा व हड्डियां अलग उपयोग में आती हैं। हमें तो इन पशुओं का कृतज्ञ होना चाहिए जो हमें इतनी सम्पदा देते हैं व हमारी सेवा करते हैं। यदी हम इनके उपकार का बदला इन्हें बूचड़खाने भेज कर चुकाएं तो यह हमारी कृतघ्नता ही है। पशओं का वध रोकने से उपर्युक्त प्रत्यक्ष लाभ के अतिरिक्त जो अप्रत्यक्ष लाभ हैं वे भी कम नहीं है। सस्ती खाद मिलने पर अनाज सस्ता होने से गरीब को १. Human Onchogene : Work done by Prof. R.A.Weinberg from Massachutts Hospital, U.S.A. and others. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
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