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________________ विज्ञान के संदर्भ में जैन जीवन-शैली १६९ व नई टैक्नीक द्वारा संचालित बूचड़खानों को भी स्वास्थ्य की दृष्टि से आदर्श नहीं कहा जा सकता तब भारत के बूचड़खानों के मांस की तो बात ही क्या । ८. अमेरिका के डा. ई. बी. एमारी तथा इगलैंड के डा. इन्हा ने अपनी विश्व विख्यात पुस्तकों 'पोषण का नवीनतम ज्ञान' और 'रोगियों की प्रकृति' में साफ-साफ माना है कि अण्डा मनुष्य के लिए जहर है । ९. इंग्लैण्ड के डा. आर. जे. विलियम का निष्कर्ष है "संभव है अण्डा खाने वाले शुरू में अधिक चुस्ती अनुभव करें किन्तु बाद में उन्हें हृदय रोग, एकजीमा, लकवा जैसे भयानक रोगों का शिकार हो जाना पड़ता है । शाकाहार अधिक पौष्टिक व गुणकारी शाकाहारी भोजन से उचित मात्रा में प्रोटीन अथवा शक्तिवर्द्धक उचित आहार प्राप्त नहीं होता-यह मात्र भ्रांति है । आधुनिक शोधकर्ताओं व वैज्ञानिकों की खोजों से यह साफ पता लगता है कि शाकाहारी भोजन से न केवल उच्च कोटि के प्रोटीन प्राप्त होते है अपितु अन्य आवश्यक पोषक तत्त्व विटामिन, खनिज, कैलोरी आदि भी अधिक प्राप्त होते है। सोयाबीन व मूंगफली में मांस व अण्डे से अधिक प्रोटीन होता है । सामान्य दालों में भी प्रोटीन की मात्रा कम नहीं होती। गेहूं, चावल, ज्वार, बाजरा, मक्का, आदि के साथ यदि उचित मात्रा में दालें एवं हरी सब्जियों का सेवन किया जाए तो न के वल प्रोटीन की आवश्याकता पूर्ण होती हैं अपितु अधिक संतुलित आहार प्राप्त होता है, जो शाकाहारी व्यक्ति को मांसाहारी की अपेक्षा अधिक स्वस्थ, सबल व दीर्घायु प्रदान करता है । अनेक शोधकर्ताओं ने यह पता लगाया है कि शाकाहारी अधिक शक्तिशाली, परिश्रमी, अधिक वजन उठा सकने वाले, शांत स्वभाव के व खुशमिजाज होते हैं । जापान में किए गए अध्ययनों से यह पता चला है कि शाकाहारी न केवल स्वस्थ व निरोग रहते हैं अपितु दीर्घजीवी भी होते हैं वे उनकी बुद्धि भी अपेक्षाकृत तेज होती है। अतः यह कहना कि मांसाहार शाकाहार की तुलना में अधिक शक्तिवर्धक हैं, एक गलत धारणा है। नेशनल इन्स्टीट्यूट आफ न्युट्रीशन, हैदराबाद द्वारा प्रकाशित (Nutritive Value of Indian Foods ) में विभिन्न खाद्य-पदार्थों की जो तुलनात्मक तालिका दी गई है। उससे यह स्पष्ट होता है कि शाकाहारी पदार्थों में प्रोटीन व अन्य स्वस्थ्य वर्धक तत्त्वों की कमी नहीं है। उस तालिका से यह भी पता चलता है कि मांसाहारी पदार्थों में (Fiber ) फाइबर (दालों, अनाज आदि का ऊपरी भाग ) की मात्रा बिल्कुल नहीं है और यह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
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