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जैन दर्शन और विज्ञान आदि अम्लान्त है। दूध केवल नवजात शिशुओं के लिए क्षारान्त है वयस्कों के लिए वह अम्लान्त बन जाता है। इस प्रकार अम्लान्त भोजन की तुलना में पर्याप्त मात्रा में क्षारान्त भोजन होने से ही व्यक्ति -“अम्लों' की विनाशलीला से बच सकता है।
चर्बी-भोजन में यदि स्नेह या चर्बी (वसा) की मात्रा सीमा से अधिक होती है तो आंतों में उसका रूपान्तरण फ्री-फेटी एसिड के रूप में होता है। इसे निष्क्रिय करने के लिए पित्त या अन्य-सोडियम, पोटेशियम आदि के क्षारों का अतिरिक्त मात्रा में व्यय करना पड़ेगा, जो एक “दुर्व्यय' है। यदि ये क्षार पर्याप्त न हों तो एसिटोन डाइ-एसेटिक एसिड जैसे अति विषैले विष-द्रव्यों का संग्रह शरीर में बढ़ेगा जो मृत्यु का भी कारण बन सकता है।
स्पष्ट है कि मांसाहार अम्लों की विनाशलीला में एक बहुत बड़ा निमित्त है। मनुष्य की प्राकृतिक शरीर-रचना शाकाहारी जीवों जैसी
इस सृष्टि में शाकाहारी व मांसाहारी जीवों के अनेकों जातियां हैं और बहुत छोटे से लेकर बड़े आकार तक के विभिन्न प्रकार के जीव हैं, किन्तु सभी शाकाहारी जीवों की शरीर रचना, हाथ, पांव, दांत, आंतों आदि की बनावट व उनको देखने, सूंघने की शक्ति व खाने-पीने का ढंग मांसाहारी जीवों से भिन्न है। जैसे
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