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विज्ञान के संदर्भ में जैन जीवन-शैली
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मांस को जहरीला बना देता है। वह जहरीला रोग ग्रस्त मांस- मांसाहारी के उदर में जाकर उसे असाध्य रोगों का शिकार बनाता है ।
अम्लों की विनाशीलता
शरीर में बाहर से प्रवेश करने वाले विष- द्रव्यों में मुख्य योगदान अशुद्ध आहार के द्वारा होता है । यदि आहार - विवेक द्वारा हित, मित, सात्त्विक आहार ही ग्रहण किया जाए, तो शरीर में बाहर से विष- द्रव्यों का प्रवेश नहीं होगा । इतना ही नहीं, शुद्ध आहार द्वारा पूर्व में जमा विष- द्रव्यों को बाहर निकालने में भी सहायता मिलेगी ।
हमारा आहार (भोजन) ऐसा होना चाहिए, जिससे कि शरीर में विष- द्रव्यों अतिमात्रा में जमा न हो पाए। ऐसा आहार "शुद्ध" आहार कहलाता है। शरीर में चयापचय की क्रिया के परिणामस्वरूप हमारे शरीर में यूरिक एसिड, लेक्टिक एसिड आदि अम्ल पैदा होते हैं। ऐसे पदार्थ भोजन में अधिक न लें जिनसे इन अम्लों में वृद्धि हो । अन्यथा इन अम्लों को निष्क्रिय करने के लिए क्षार की मात्रा पर्याप्त न होने से, अम्ल अवशिष्ट रह जायेगा, जो हानिकारक ही सिद्ध होता है ।
कार्बोहाइड्रेट-यदि भोजन में कोर्बोहाइड्रेट की मात्रा आवश्यकता से अधिक हो जाती है, तो उससे कार्बन डाईआक्साइड की उत्पत्ति बढ़ जाती है जिससे शरीर में कार्बोनिक ऐसिड पैदा होता है, जो एक विष- द्रव्य के रूप में शरीर को नुकसान पहुंचाता है।
प्रोटीन - भोजन में प्रोटीन का जो हिस्सा होता है, उसके चयापचय के परिणामस्वरूप यूरिक एसिड का निर्माण होता है । अत्यधिक श्रम से शरीर में लैक्टिक एसिड की मात्रा बढ़ जाती है। इन अम्लों को शरीर से यथाशीघ्र निष्कासित करना चाहिए तथा निष्कासित करने से पूर्व उन्हें क्षारों द्वारा निष्क्रिय करना आवश्यक है। सोडियम, पोटेशियम, केल्शियम और मेग्नेशियम क्षारों की पर्याप्त मात्रा रक्त प्रवाह में रखने के लिए इन द्रव्यों से युक्त पदार्थ भोजन द्वारा ग्रहण करना आवश्यक है। यदि भोजन द्वारा इनकी आपूर्ति नहीं होती है तो हमारे शरीर के भीतर के क्षार - भंडार जैसे- अस्थियां, पृष्ठ-रज्जु, लीवर आदि में से उन्हें निकालकर रक्त प्रवाह में भेजना पड़ता है। इस प्रकार जब क्रमश: क्षार - भंडार रिक्त हो जाते हैं तब रक्त में अतिरिक्त मात्रा में जमा अम्ल अपनी विनाशलीला शुरू कर देते हैं । उदारणार्थ- संधिवात की बीमारी में अस्थि- संधियों में यूरिक ऐसिड जमा होता है । इसलिए हमारे भोजन में अम्ल-निरोधक या क्षारान्त पदार्थ की पर्याप्त मात्रा में पूर्ति आवश्यक है । फल, सब्जी, भाजी, क्षारान्त हैं तथा दाल अन्न
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