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विज्ञान के संदर्भ में जैन जीवन-शैली
१५७ ने आहार-शुद्धि को प्राथमिकता दी है। हम अच्छाई का प्रारम्भ आहार-शुद्धि से व्रत करें। हम न खाएं, यह सबसे अच्छा है, पर यह संभव नहीं है। आहार हमारे जीवन की अनिवार्यता हैं हम वह न खाएं जिसकी अनिवार्यता नहीं है। वनस्पति को आहार की अनिवार्यता के रूप में स्वीकृति है। इसके पीछे हिंसा का अल्पीकरण, स्वास्थ्य और सात्त्विक संस्कार एवं विचार का दृष्टिकोण बहुत स्पस्ट है। ये तीनों दृष्टिकोण मांसाहार का समर्थन नहीं करते। इसलिए इन दृष्टिकोणों से मांसाहार अनिवार्यता की कोटि में नहीं आता। आधुनिक शरीर-शास्त्री, आहार-शास्त्री और स्वास्थ्य-शास्त्री भी अपने अन्वेषणों के आधार पर मांसाहार को शारीरिक और मानसिक, दोनों दृष्टियों से दोषपूर्ण बतलाते हैं। मांसाहार अप्राकृतिक उत्तेजना उत्पन्न करता है, सहनशीलता को कम करता है, धमनियों और शरीर के तंतुओं के लचीलेपन को नष्ट कर आयु को कम करता है।
क्रूरता, क्षणिक आवेश, अधैर्य-ये मांसाहार के सहज परिणाम हैं। आदमी मांस खाकर भी जीता है और अनाज खाकर भी जीता है। इन दोनों में हम चयन करें और सोचें-मांस की अनिवार्यता है या अनाज की अनिवार्यता। हिंसा की संभावना मांस खाने में ज्यादा है या अनाज खाने में है? इस चयन का फलित होगा कि मांस खाना अनिवार्य नहीं है, अनाज खाना अनिवार्य है। क्योंकि शाकाहार का कोई विकल्प नहीं है जो मनुष्य को जीवित रख सके। मांसाहार का विकल्प है-शाकाहार । मांस को छोड़ने वाला शाकाहार के बल पर जी सकता है। शाकाहारी मांस नहीं खाता, पर मांसाहारी अनाज और फल, साग-सब्जी खाते हैं। क्योंकि मांसाहार करने पर भी शाकाहार की अनिवार्यता को वे अतिक्रमण नहीं कर पाते। शाकाहार की न्यूनतम अपेक्षा है, उसे छोड़ा नहीं जा सकता। उसके बिना काम नहीं चल सकता। यह अनिवर्यता का सिद्धान्त है। अनाज और मांस दोनों की तुलना में मांस का भोजन मनुष्य को अधिक क्रूर बनाता हैं। मांस को प्राप्त करने में मनुष्य को जितना क्रूर बनना पड़ता हैं, उतना अनाज को प्राप्त करने में नहीं बनना पड़ता। जो लोग मांसाहारी है, वे भी बुचड़खाने में नहीं जाते। जहां जीवों का बध होता है, पशु-पक्षी मारे जाते हैं, वहां नहीं जाते। यदि वे वहां चले जाएं तो संभव है उनके लिए भी मांस खाना मुश्किल हो जाए। अनाज खाने में भी हिंसा है, क्रूरता की दृष्टि से मांस भोजन की कोटि में नहीं आता। अनिवार्यता और हिंसा का अल्पीकरण-इन दोनों दृष्टियों से मांस-भोजन स्वीकार्य नहीं हो सकता। जिन लोगों ने करुणा से आर्द्र होकर देखा उन सबने एक स्वर से कहा-मनुष्य विवेकशील प्राणी है वह विकल्पों का चयन करता है। इसलिये उसे मांस नहीं खाना चाहिए।
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