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जैन दर्शन और विज्ञान कुछ लोगों का खयाल है कि स्वास्थ्य की रक्षा के लिए घी, दूध आदि की आवश्यकता है। संतुलित भोजन की दृष्टि से एक हद तक इनकी आवश्यकता हो सकती है। पर दीर्घ और स्वावस्थ जीवन पर शोध से इस बात का पता चला है कि उसका मुख्य राज सीधा-सादा भोजन ही है। आज दक्षिणी अमेरिका की पहाड़ियों तथा घाटियों में, जॉर्जिया आदि के गांवों में अनेक शतायु व्यक्ति मिलते हैं। उनसे बातचीत करने पर यह पाया गया है कि उनके जीवन का रहस्य सीधा-सादा भोजन तथा तनावमुक्त जीवन है। यद्यपि वे यह नहीं बता पाते कि उनकी उम्र कितनी है पर न्यूयार्क अकादमी ऑफ मेडिसिन के डायरेक्टर ने अनेक लोगों की शताधिक आयु को स्वीकार किया है।
नयी शोधों के आधार पर शरीर-शास्त्र में यह स्थिर हो गया है कि अधिक चिकनाई का प्रयोग स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है। यदि चिकनाई ४० प्रतिशत कैलोरी से ज्यादा हो जाए तो मोटापा, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, मधुमेह आदि बीमारियों की आशंका बढ़ जाती है। कई अध्ययनों से यह भी पता चलता है कि भोजन में अधिक चिकनाई होने तथा सीने और आंतों के कैंसर में पारस्परिक सम्बन्ध है। सेचुरेटेड चिकनाई का अधिक प्रयोग भी उचित नहीं है।
तली हुई चीजें भी हमारे पाचन-तंत्र को क्षति पहुंचाती हैं। बहुत सारे लोग बहुत सारी चीजों को केवल स्वाद की दृष्टि से ही खाते हैं। मिर्च-मसाले, हींग आदि ऐसी चीजें आदमी के भोजन में प्रविष्ट हो गयी हैं जिनकी शरीर के लिए उतनी आवश्यकता नहीं है, जितनी जीभ के लिए है। दालें, शक्कर, घी, का उपयोग कम-से-कम किया जाना उत्तम स्वास्थ्य के लिए जरूरी है। स्वास्थ्यपूर्ण भोजन में रासायनिक खाद्यों का भी निषेध है। जिस अन्न में समस्त खनिज-लवण स्वाभाविक हो वही पूर्ण स्वास्थ्यप्रद भोजन है। चीनी और नमक पर नियंत्रण
चीनी, नमक और चिकनाई ये तीनों भोजन के अनिवार्य अंग बने हुए हैं। इनके कारण अनेक रोग उत्पन्न होते हैं, यह सब नहीं जानते। हृदय की बीमारी के लिए तीनों निषिद्ध माने जाते हैं। बहुत चीनी का प्रयोग भी न हो, बहुत चिकनाई का प्रयोग भी न हो और नमक का प्रयोग सर्वथा न हो तो बहुत अच्छा है। शक्ति के लिए चीनी आवश्यक होती है, किन्तु यह सफेद चीनी नहीं। चीनी तो सहज प्राप्त होती है। दूध में चीनी होती है। फिर दूसरी चीनी की जरूरत क्या
इसी प्रकार चीनी के विषय में 'साइन्स रिपोर्ट' अगस्त, १९७६ में श्री आई. रधुनाथ ने लिखा है-इस शताब्दी के प्रारम्भ से हमारे भोजन की आदतों में
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