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जैन दर्शन और विज्ञान इच्छा है उसे जिह्वा का दास नहीं बनना चाहिए और न उसे अंधाधुंध नियंत्रणहीन रूप में खाते ही रहना चाहिए। जो व्यक्ति अपने शरीर पर अवांछित दबाव नहीं डालता है वह निश्चय ही रोगमुक्त रहता है। पूरे रूप में शरीर को पोषण मिले इसके लिए यह आवश्यक है कि भूख के बिना न खाया जाये । भोजन ठूंसते ही रहना मात्र उसका लक्ष्य नहीं होना चाहिए। दो भोजनों के बीच में काफी समय का अन्तर रखते थोड़ा कम खाना अच्छे स्वास्थ्य की गारंटी है ।"
निश्चय ही उपरोक्त कथनों में ऊनोदरी तथा वृत्ति - संक्षेप का समर्थन मिलता है। अत: इस संबंध में सावधानी बरतनी चाहिए कि भोजन इतना ही किया जाय कि थोड़ी भूख बाकी रहे ।
लुई ओगाफाल्स, ओहियो में अपराधकर्मियों और भोजन के सम्बन्ध में शोधकार्य प्रारम्भ किया गया है। वहां अपराधकर्मियों की जांच की जाती है कि वह 'हाइपराग्लाईसीमिया' – खून में शक्कर के रोग से ग्रस्त तो नहीं है । इससे ग्रस्त होने पर व्यक्ति में चिड़चिड़ापन आ जाता है। वह शंकालु प्रवृत्ति का हो जाता है, और यदा-कदा 'हाइपरग्लाईसीमिया' जनित अपराधों में प्रवृत्त हो जाता है, यथा मारपीट, यौन अपराध तथा कानून का उल्लंघन आदि । ऐसे व्यक्तियों के भोजन में परिवर्तन कर दिया जाये, मीठी चीजें तथा स्टार्च वाली चीजें बन्द कर दी जायें तो उसकी प्रवृतियों में परिवर्तन हो जाता है। चीन के एक विख्यात दार्शनिक लिन्ड ताड़ ने बिलकुल सच है- - हमारा जीवन भगवान पर आश्रित नहीं है, वह हमारे रसोइयों पर आश्रित
कहा
है ।
रात्रि - भोजन का परिहार
भोजन के सम्बन्ध में रात्रि - भोजन नहीं करना, यह भी महावीर की एक विशेष सूचना है। रात्रि भोजन से अंधकार में बहुत सारे जीव-जन्तुओं की हिंसा की संभावना तो होती ही है, पर इसके अतिरिक्त पाचन की दृष्टि से भी इसकी अपनी उपयोगिता है। दिन रहते-रहते खाने से सूरज की गर्मी का भोजन के पाचन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। अच्छे पाचन के लिए मस्तिष्क क्रियाशील और सचेत रहना आवश्यक है तो अच्छी नींद के लिए खाली पेट रहना भी आवश्यक है। यह शरीर-विज्ञान के संबंध में एक सर्वसम्मत नियम है । इस दृष्टि से दिन रहते-रहते खा लेना एक स्वास्थ्यकर नियम भी बन जाता है। जो लोग रात में देर से भोजन करते हैं और फिर सो जाते हैं, अपने शरीर के साथ जबरदस्ती करते हैं ।
प्रश्न है कि जैन परम्परा में रात्रि - भोजन को अस्वीकार क्यों किया? भला, भूख के लिए भी कोई समय निर्धारित होता है? यर्थाथता यह है कि जब भूख लगे तब भोजन खा लो। यह एक नियम ही पर्याप्त है भूख के लिए क्या दिन और
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