SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 162
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विज्ञान के संदर्भ में जैन जीवन-शैली १४७ यह है कि हमारा स्वास्थ्य और दीर्घ जीवन भोजन की मात्रा की अपेक्षा उसके पाचन की रासायनिक प्रक्रिया तथा आत्मसात् करने पर अधिक आधारित है। अपनी जिह्ना के स्वाद तथा प्राकृतिक आदतों के कारण हमारे शरीर में अनेक प्रकार का विजातीय कचरा इकट्ठा हो जाता है। उसके प्रभाव से मुक्त होने के लिए उपवास एक रामवाण औषधि के समान है। साधारणतया लोग उपवास से डरते है। डॉक्टर लोग भी यह कहते हैं कि शरीर की शक्ति बनाये रखने के लिए कुछ न कुछ खाते रहना चाहिए। पर प्राकृतिक जीवन जीने वाले प्राणियों की ओर ध्यान दिया जाए तो यही लगेगा कि वे अपनी बहुत सारी बीमारियां उपवास के द्वारा अनेक रोगों से मुक्त हुआ जा सकता है। यह आपको क्षीण करने वाला नहीं है, अपितु तेजस्विता प्रदान करने वाला है। डॉ. लक्ष्मीनारायण शर्मा ने अपनी पुस्तक 'सरल प्राकृतिक चिकित्सा' में उपवास के विषय में अनेक महत्त्वपूर्ण बातें लिखी हैं, जो संक्षेप में इस प्रकार हैंउपवास शरीर में क्या करता है? शरीर में स्वाभाविक रूप से अनेक प्रकार की ज्वलन-क्रिया (कम्बश्चन) होती रहती है। ज्वलन-क्रिया के कारण ही हमारा शरीर एक खास तापक्रम तक गरम रहता है। इसे तेजस् शरीर भी कहा जा सकता है। लेकिन ज्वलन-क्रिया जारी रखने के लिए हमेशा ईंधन की जरूरत होती है। साधारण रूप में हमें यह ईंधन भोजन के कार्बोहाइड्रेट्स और चर्बी (चिकनाई) से मिलता रहता है। लेकिन उपवास-काल में जब बाहर से भोजन मिलना बन्द होता है, तो शरीर में संग्रहीत पदार्थ इस अग्नि में जलने लगता है। इसीलिए उपवास द्वारा चर्बी बहुत जल्दी कम होती है। केवल चर्बी नहीं जलती पेशियां, रक्त और जिगर में से संगृहीत शक्कर आकर जलती है। प्रत्येक ऊतक (टिशू) से संगृहीत भोजन आकर जलने लगता है और इस संगृहीत भोजन के साथ प्रत्येक धातु की संगृहीत गन्दगी (विजातीय द्रव्य) भी उखड़कर आती है और इस ज्वलन-क्रिया से भस्म हो जाती है। इसीलिए यह में कहा जाता है कि उपवास शरीर की भीतरी गंदगी का नाश कर देता है। ___शरीर की जमा पूंजी खत्म होने के कारण उपवास काल में शरीर का वजन प्राय: १ पौंड प्रतिदिन के हिसाब से कम होता है। शरीर की विभिन्न धातुएं इस अनुपात से छीजती हैं। चर्बी ९७ प्रतिशत, जिगर ६२ प्रतिशत, तिल्ली ५७ प्रतिशत, मांसपेशियां ३१ प्रतिशत, मस्तिष्क या तंतु ० प्रतिशत। इस छीजन के कारण उपवास-काल में शरीर में कुछ कमजोरी आती है, लेकिन चंकि मस्तिष्क बिलकुल नहीं छीजता, इसलिए सोच-विचार की शक्ति बढ़ती हैं, नींद अच्छी आती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy