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________________ १४६ जैन दर्शन और विज्ञान पहले दल वाले बूढ़े की भांति शिथिल और थके-मांद नजर आ रहे थे। डॉ. बेडो ने उपवास के दौरान शरीर में होने वाले जैव-रासायनिक परिवर्तनों के आधार पर उक्त निष्कर्ष निकाले हैं । आजकल तो चिकित्सा के क्षेत्र में भी उपवास को मान्यता मिल गई है। जैन धर्म मूल में शरीर - विज्ञान नहीं है । वह तो आत्मविज्ञान है । पर चूंकि हमारी आत्मा शरीर में रहती है; अत: वहां शरीर के संबंध में भी बहुत सारी चर्चा हुई है। जैन साधना-पद्धति का शरीर की पवित्रता के साथ निश्चित अनुबंध तो नहीं है। पर वे इस बात को भी स्वीकार करते हैं कि उच्चतम साधनाओं के लिए एक विशिष्ट प्रकार के शरीर - संरचना की आवश्यकता है । जैसा कि लुई हूक ने कहा है - स्वस्थ शरीर वही है, जो आवेगमुक्त हो । महावीर की साधना के लिए आवेगमुक्त शरीर की आवश्यकता बताते हैं । जब तक शरीर आवेगग्रस्त होगा, तब तक उसमें स्वस्थ आत्मा का निवास न हो सकेगा। उपवास से आवेगों पर नियन्त्रण प्राप्त कि जा सकता है । उपवास- चिकित्सा ---- कुछ लोगों को यह सुनकर विस्मय हो सकता है क्या उपवास से भी चिकित्सा हो सकती है? पर आज इस बात पर विस्मय करने की कोई आवश्यकता नहीं है। डॉ. एडवर्ड हुकर डेवी ने ' The Non-break-fast and Fasting Cure' नाम की एक महत्त्वपूर्ण पुस्तक लिखी है। उनका कहना है- बीमारी में जबरदस्ती खाने और दवाएं लेने की अपेक्षा उपवास अधिक लाभप्रद है । प्राकृतिक चिकित्सा की दृष्टि से लम्बे तथा छोटे- दोनों ही प्रकार के उपवासों का विधान है। छोटे उपवास अर्थात् तीन दिन के उपवास । उससे ज्यादा दिनों के उपवास बड़े उपवास कहलाते हैं । उपवास-काल में कभी-कभी भोजन की इच्छा, बेचैनी या कमजोरी महसूस हो सकती है, पर ये सारी स्थितियां अस्थायी हैं । प्रो. दूहरिट ने अपनी पुस्तक 'Diet and Healing Systems' में लिखा है-उपवास काल में जो कमजोरी महसूस होती है, वह भोजन का अभाव नहीं है, अपितु शरीर में एकत्र मल का विनाश होता है । शरीर की शुद्धि हो जाने के बाद शरीर में पुन: शक्ति आ जाती है । यह कोई जादू नहीं है, अपितु शरीर में स्थित विजातीय द्रव्यों के हट जाने से सहज प्रतिफल होता है । I साधारणतया लोगों की धारणा है कि भोजन की मात्रा जितनी अधिक होगी, उतनी ही शक्ति प्राप्त होगी । पर यह धारणा सर्वथा भ्रामक है। सच बात तो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
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