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________________ विज्ञान के संदर्भ में जैन जीवन-शैली १४५ होगा कि जब मनुष्य का आहार पर नियन्त्रण हो जाएगा, तो बाकी के सब नियन्त्रण तो सहज ही प्राप्त हो जाएंगे। इसलिए वे उपवास को बहुत अधिक महत्त्व देते हैं। इसके साथ दूसरा सवाल उठता है कि क्या बिना आहार के जीवन का काम चल सकता है? जैसे कि पहले कहा गया, महावीर की दृष्टि जीवन और मृत्यु पर नहीं है। आहार के साथ हमारा इतना घनिष्ठ लगाव है कि हम उसके बिना रह नहीं सकते। महावीर सबसे पहले इस लगाव को तोड़ना चाहते हैं। ऐसा नहीं है कि एक दिन आहार न किया, तो आदमी मर जाए। कठिनाई यही है कि आदमी का आहार के साथ इतना लगाव हो गया है कि उपवास की बात करते ही उसका सारा मानसिक ढांचा चरमरा जाता हैं। उपवास का मूल्य : वैज्ञानिकों की दृष्टि में डॉ. ज्होन कीथ बेडो द्वारा लिखित पुस्तक- "Stay young-Reduce your Rate of Aging" में अपने वैज्ञानिक प्रयोगों की चर्चा के दौरान बताया गया है कि १. उपवास वृद्धावस्था को रोकने का एक प्रमाणसिद्ध प्रयोग है। चूहों पर जब ये प्रयोग किए गए तो उसके आश्चर्यजनक परिणाम सामने आए। चूहों के एक दल को अत्यधिक भोजन की सुविधा दी गई, दूसरे दल को सामान्य, नियमित एवं नियन्त्रित मात्रा में भोजन दिया गया तथा तीसरे दल को एक दिन भोजन (सामान्य एवं नियन्त्रित मात्रा में) एवं एक दिन उपवास पर रखा गया। दूसरे दल के चूहे पहले से दीर्घजीवी हुए तथा तीसरे दल वाले दूसरे से भी बहुत अधिक दीर्घजीवी हुए। २. उपवास के दौरान शरीर का “इम्यूनोलोजिकल सिस्टम'' (प्रतिरोधक तंत्र) असंदिग्धरूप से शक्तिशाली होता है। इस तन्त्र में काम करने वाले रक्त के श्वेतकणों, जिन्हें फेगोसाइट्स और लिम्फोसाइट्स कहा जाता है, की कार्यक्षमता में अद्भुत वृद्धि होती है। लिम्फोसाइट्स के दो प्रकारों-बी-सेल्स और टी-सेल्स जो आगन्तुक कीटाणु या विषाणुओं का प्रतीकार करते हैं, की कार्यक्षमता में वृद्धि होने से शरीर में जमा होने वाले विजातीय तत्त्वों का पूर्ण शोधन सम्भव हो पाता है। इन विजातीय तत्त्वों के जमाव का परिणाम ही है-कोशिकाओं का वृद्ध होना, जो अन्ततोगत्वा मनुष्य को वृद्ध बना देती है। ३. कैंसर जैसे खतरनाक कोशिकाओं की सफाई में उपवास बहुत उपयोगी है। डॉ. बेडो ने स्वय ३ १/२ वर्ष तक एकान्तर उपवास कर पाया कि इससे स्वास्थ्य बहुत अच्छा रहता है। चूहों के प्रयोगों में यह बात भी सामने आई कि जहां तीसरे दल के चूहे दो वर्ष के बच्चों की तरह कूद-फांद मचा रहे थे वहां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
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