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विज्ञान के संदर्भ में जैन जीवन-शैली
१४३ शरीर में जितने काम-केन्द्र, वासना-केन्द्र, आवेग-केन्द्र और स्मृति केन्द्र हैं वे सारे उत्तेजित होते हैं भोजन को प्राप्त कर। भोजन के अभाव में ये सारे केन्द्र शिथिल हो जाते हैं। चूंकि उन्हें अब सहयोग नहीं मिलता, सहयोग का रास्ता कट जाता है। सेना के जब रसद नहीं मिलती, वह आगे नहीं बढ़ पाती। शत्रु-सेना सब से पहले रसद के मार्ग को काट देती है। उपवास रसद के मार्ग को काट देता है। उस स्थिति में इन्द्रियां शांत और मन शांत इस प्रक्रिया के द्वारा यह होता है कि उत्तेजना या सक्रियता के जो साधन हैं, उपाय हैं, निमित्त हैं, उनको हम समाप्त कर देते हैं, किन्तु पूरा समाप्त नहीं कर पाते। यह पूरी प्रक्रिया नहीं है। केवल मार्ग में जो व्यवधान डालते थे, उन्हें शिथिल बना डालते हैं । आहार का विसर्जन, परित्याग, एक शब्द में उपवास, इसलिए कि जिससे उत्तेजना पैदा हो रही है, उसका मार्ग अवरूद्ध किया जाए।
हम भोजन नहीं करते तो इसका परिणाम केवल स्थूल शरीर पर ही नहीं होता, सूक्ष्म शरीर पर भी होता है। यदि उसका परिणाम केवल स्थूल शरीर पर ही होता तो बहुत छोटी बात होती। सूक्ष्म शरीर को भी शक्ति प्राप्त होती है स्थूल शरीर के माध्यम से। उसे भी शक्ति चाहिए। वह स्थूल शरीर से ऐसा काम करवाता है कि उसे शक्ति प्राप्त हो सके। उपवास करना सूक्ष्म शरीर को पसन्द नहीं है। भूखा रहा स्थूल शरीर और चोट पड़ी सूक्ष्म शरीर पर। ऊर्जा का स्रोत है स्थूल शरीर। हमारा मन बुरी बात सोचता है तो ताकत किसे मिलती है? ताकत मिलती है सूक्ष्म शरीर को, कर्म शरीर को। सारी शक्ति प्राप्त होती है स्थूल शरीर के द्वारा। जब भोजन बंद होता है तो परेशानी होती है सूक्ष्म शरीर को। उसका प्रभाव वहां तक पहुंच जाता है। उपवास
उपवास ही सबसे बड़ी औषधि है। हम जब तक इसके महत्त्व को नहीं समझेंगे, हमारे भोजन की समस्या का समाधान नहीं निकलेगा। द्वितीय महायुद्ध के बाद जब जर्मनी में सर्वेक्षण किया गया तब निष्कर्ष निकाला गया कि यहां अधिकांश बीमारियां अतिभोजन के कारण हुई हैं। हम लोग इतना खाते हैं जितना हमें नहीं खाना चाहिए। हमें जितनी भूख लगती है उसे चार भागों में बांट देना चाहिए। दो भाग भोजन के लिए, एक भाग पानी के लिए और एक भाग वायु के लिए छोड़ देना चाहिए। परन्तु लोग जब खाना खाने के लिए बैठते है तो भूख से भी और अधिक खाना चाहते है। ताकि भूख न लगे। खाने के आधा घंटा बाद कहते हैं कि पेट फटा जा रहा है, आंतें फट रही हैं। इस प्रकार हमारे यहां खाने की व्यवस्थित पद्धति नहीं है। भोजन के सम्बन्ध में हमारा अज्ञान ही बहुत सारी समस्याओं को जन्म देता है। खाना जरूरी है, तो उसके साथ-साथ "उपवास'' और नहीं खाना भी
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