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________________ १३६ जैन दर्शन और विज्ञान जेब में क्या हैं, एक पेचकस का चित्र बना दिया। डॉ. बास्टिन यह देखकर आश्चर्य में पड़ गये और दुविधा में भी कि गैलर ने पेचकस का जो चित्र बनाया है, उसमें उसका ऊपरी सिरा मुड़ा हुआ है। जेब से जब डिब्बा निकालकर डॉ. बास्टिन ने देखा, तो पाया कि सभी पेचकस या तो मुड़े हुए हैं या टूटे हुए। डाक्टर बास्टिन का कहना है कि भौतिक वस्तुएं गैलर के प्रभाव से इस तरह परिवर्तित होती है “माने कोई नियम नहीं व्यक्तित्व क्रियाशील है।" कैलीफोर्निया की स्टैंफोर्ड रिसर्च इंस्टीट्यूट में भौतिक विज्ञानी डॉ. हैराल्ड पुथोंक व रसल टार्ग ने अपनी प्रयोगशालाओं में गैलर पर नियंत्रित परीक्षण किये। इनमें से कुछ की फिल्में भी बनाई गई। एक प्रयोग, १९७२ में, छ: सप्ताह तक चला। गैलर ने प्रथम आठ में से आठों बार एक धातु के डिब्बे के अन्दर पड़े पासे के ऊपरी भाग का सही 'अनुमान' लगाया। वैसे यह प्रयोग दो बार और किया गया था लेकिन इनमें गैलर को कुछ करने की आन्तरिक प्रेरणा नहीं मिली। और उसने उनके बारे में कुछ नहीं कहा। उसने अनेक रेखाचित्रों की अनुकृतियां (बिना उन्हें देखे) बना दी। चुम्बकीय क्षेत्र को नापने वाले यंत्र गॉस मीटर के निकट हाथ ले जाकर उसने उसकी सुई को पूरा घुमा दिया। १९७३ में उस पर तेरह प्रयोग किये गये, और इनमें और भी अधिक सावधानियां बरती गई। गैलर को विद्युतीय रूप से पृथक् किये हुए कमरे में रखा गया, ताकि सामान्य संचार के किसी भी साधन द्वारा वह कोई भी सूचना प्राप्त न कर सके। एक प्रयोग में शब्दकोश में से दैवयोग से चयनित किसी एक भी संज्ञा का चित्र गैलर के कमरे से बाहर (प्रषक) बनाता था व गैलर कमरे के अन्दर बैठा उसकी अनुकृति बनाता। कभी प्रेषक व गैलर की स्थितियां उल्टी भी कर दी गई यानी प्रेषक कमरे के अन्दर व गैलर बाहर। इस प्रकार १५ चित्र प्रेषित किए गए। इनमें ४ बार गैलर ने कोई चित्र नहीं बनाया (उसका कहना था कि सफलता से पूर्व जो आत्मविश्वास उसमें उभरता है, वह उस समय नहीं उभरा था) चार बार वह मूल चित्र से मिलती-जुलती अनुकृतियां बना पाया, शेष सातों बार उसे स्पष्टत: सफलता प्राप्त हुई। इनमें से एक जिसमें उड़ती हुई एक समुद्री चिड़ियां का चित्र था और एक जिसमें कि अंगूर के गुच्छे का चित्र प्रेषित किया गया था गैलर ने लगभग हुबहू वैसा का वैसा चित्र बना दिया था। अंगूर के गुच्छे में विभिन्न कतारो में चौबीस अंगूर-गैलर ने चौबीस गोले ऊपर-नीचे प्रत्येक कतार मे मूल चित्र के अनुरूप बनाए। यही नहीं इनमें निकलती हुई रेखा भी उसी स्थान व दिशा की ओर जाती हुई बनाई जैसी की मूलचित्र में अंगूर के गुच्छे की टहनी बाहर निकलती हुई चित्रित की गई थी। इन अन्वेषकों के परीक्षणों में ग्रेलर धातुओं को मोड़ने की अपनी क्षमता का प्रदर्शन नहीं कर सका। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
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