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________________ जैन दर्शन और परामनोविज्ञान १३३ करके अथवा उनके ऊपर (दूरी से ) अपने हाथ चक्राकार रूप में घुमाकर, उन वस्तुओं को इधर-उधर हिला-डुला रही है । अनेक बार उन्होंने ये करतब टेलीविजन के कैमरे के समक्ष, अनेक वैज्ञानिकों, परामनोवैज्ञानिकों, रिपोर्टरों व अन्य दर्शकों की उपस्थिति में करके दिखाये । प्रदर्शनों से पूर्व मादाम मिखाइलोवा की पूरी अच्छी तरह जांच-पड़ताल कर ली जाती थी कि उन्होंने कहीं कोई धागे या अन्य ऐसी चीज छुपा तो नहीं रखी है, जिससे कि वे वस्तुओं में गति उत्पन्न कर देती हैं । कोई चुम्बक छुपाया हुआ नहीं है, इस उद्देश्य से उनका 'एक्स-रे' भी किया जाता था, यद्यपि अचुम्बकीय वस्तुओं जैसे लकड़ी, कांच व अण्डों को भी गति प्रदान करती रही हैं। दर्शकों के सम्मोहित हो जाने सम्भावना पर भी विचार किया गया लेकिन इसे सही नहीं पाया गया । इन प्रयोगों में, जैसे एक बार जब उन्होंने पहले एक कम्पास की सुई को घुमा दिया फिर पूरे कम्पास को उसके केस सहित अपने हाथ को और बाद में अपने शरीर को घुमाते हुए घुमाया, तो यह स्पष्ट देखा गया कि उन्हें कितना अधिक परिश्रम करना पड़ रहा है-उनका सारा मुंह सिकुड़-सा गया - माथे पर अनेक लकीरें उभर आईं। 'करतब' दिखाने हेतु स्वयं को उपयुक्त स्थिति में लाने के लिए कभी-कभी उन्हें दो से चार घण्टे तक लग जाते थे। डॉ. गेनाडे सुर्गेव का कहना है कि इनकी नाड़ी की गति २४० तक हो जाती थी और कोई आधे घंटे के भीतर ही उनके शरीर का भार ४ पौंड तक कम हो जाया करता था । करतब कर चुकने के बाद वे एकदम निढाल भी हो जाती थीं, उनके पैरों में दर्द होने लगता और कभी-कभी तो कुछ देर तक उन्हें दिखाई भी नहीं देता था। डॉ. सुर्गेव ने अपने विशिष्ट उपकरणों की सहायता से मादाम मिखाइलोवा के शरीर को घेरनेवाले 'शक्तिपूर्ण क्षेत्र' की जांच की, तो पता चला कि उनकी विद्युत् चुम्बकीय शक्ति का क्षेत्र औसत व्यक्ति की अपेक्षा कहीं ज्यादा था । उन्होंने यह भी पता लगाया कि आम तौर पर व्यक्ति अपने मस्तिष्क के अग्रभाग के बजाय पृष्ठभाग से तीन या चार गुना अधिक विद्युत् वाल्टेज प्रवाहित करता है जबकि मादाम मिखाइलोवा अपने मस्तिष्क के पृष्ठभाग से कोई ५० गुना अधिक वोल्टेज प्रवाहित करती थी । १९७२ में एक आंग्ल भौतिक-शास्त्री व डाऊन टाउन में परामनोवैज्ञानिक प्रयोगशाला के निदेशक, बेन्सन हर्बर्ट, मादाम मिखाइलोवा का अध्ययन करने मास्को गये। आपने पाया कि वे वस्तुओं को दूर तक सरका ही नहीं देती हैं वरन् इच्छानुसार अपने दायें या बायें हाथ में गर्मी भी उत्पन्न कर सकती है । अपने गर्म हाथ से यदि वे किसी की बांह पकड़ लेतीं तो उसे बहुत दर्द होने लगता व वहां जलने का निशान भी बन जाता था जो कई दिनों तक बना रहता । कोई तीन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
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