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जैन दर्शन और विज्ञान 0 पुष्प-चारण-वनस्पति को कष्ट दिए बिना फूलों के सहारे चलने की
क्षमता।
० श्रेणी-चारण- पर्वतों के शिखरों पर चलने की क्षमता। 0 अग्निशिखा-चारण-अग्नि की शिखा का आलंबन ले चलने की क्षमता। .0 धूम-चारण-धूम की पंक्ति के सहारे उड़ने की क्षमता। ० मर्कटतंतु-चारण-मकड़ी के जाल के सहारा ले चलने की क्षमता।
० ज्योतिरश्मि-चारण-सूर्य, चांद या अन्य किसी ग्रह-नक्षत्र की रश्मियों को पकड़कर ऊपर जाने की क्षमता।
० वायु-चरण-हवा के सहारे ऊपर उड़ने की क्षमता। ० जलद-चारण-मेघ के सहारे चलने की क्षमता। ० अवश्याय-चारण-ओस के सहारे उड़ने की क्षमता।
१४. आमर्ष-औषधि-हस्त, पाद आदि के स्पर्श से व्याधि के अपनयन की क्षमता।
१५. क्ष्वेलौषधि-थूक से व्याधि के अपनयन की क्षमता। १६. जल्लौषधि-मेल से व्याधि के अपनयन की क्षमता। १७. मलौषधि-कान, दांत आदि के मल से व्याधि के अपनयन की
क्षमता।
१८. विपुडौषधि-मल-मूत्र से व्याधि के अपनयन की क्षमता।
१९. सर्वौषधि-शरीर के सभी अंग, प्रत्यंग, नख, दंत आदि से व्याधि के अपनयन की क्षमता।
जिसे ये औषधि-ऋद्धियां (१४-१९) प्राप्त होती हैं, उसके अवयवों में रोग. को दूर करने की क्षमता विकसित हो जाती है और उसके थूक, मेल, मल, मुत्र आदि सुरभित हो जाते हैं।
२०. आस्यविष-वाणी के द्वारा दूसरे में विष व्याप्त करने की क्षमता। २१. दृष्टिविष-दृष्टि के द्वारा दूसरे में विष व्याप्त करने की क्षमता। २२. क्षीरामवी- ११. हाथ के स्पर्श मात्र से विरस भोजन को दूघ, मधु, २३. मध्वास्रवी- घी और अमूत की भांति सरस करने की क्षमता। २४. सर्पिरालवी- | २. दूध, मधु, घी और अमृत की भांति मन को २५. अमृतास्रवी-- आह्लादित और शरीर को रोमांचित करने की
वाचिक क्षमता।
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