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________________ जैन दर्शन और परामनोविज्ञान आदि शक्तियों में प्रतिलक्षित होते हैं । ऋद्धियां: प्राप्ति और परिणाम ऋद्धि की उपलब्धि के अनेक साधन हैं- विद्या, मंत्र, तंत्र, तपस्या भावना और ध्यान। इनकी प्रायोगिक पद्धति प्रायः लुप्त हो चुकी है। फिर भी उसके कुछ बीज आज भी सुरक्षित हैं । कुछ प्रमुख ऋद्धियां इस प्रकार है- १. केवलज्ञान - पूर्ण अतीन्द्रिय ज्ञान । २. अवधिज्ञान - आंशिक अतीन्द्रिय ज्ञान । ३. मनः पर्यवज्ञान - मानसिक अवस्थाओं का ज्ञान । ४. बीजबुद्धि - एक बीज - पद को प्राप्त कर उसके सहारे अनेक पदों और अर्थों को जानने की क्षमता । क्षमता ! ५. कोष्ठबुद्धि - गृहीत पद और अर्थ की ध्रुव स्मृति । ६. पदानुसारित्व - एक पद के आधार पर पूरे श्लोक या सूत्र को जानने की १२७ ७. संभिन्नस्रोत-(१) किसी भी एक इंद्रिय के द्वारा सभी इंद्रियों के विषयों को जानने की क्षमता । ८. दूर - आस्वादन -दूर से आस्वाद लेने की क्षमता । ९. दूर-दर्शन- दूरस्थ विषयों को देखने की क्षमता । १०. दूर - स्पर्शन- दूरस्थ विषयों का स्पर्श करने की क्षमता । ११. दूर-घ्राण- दूरस्थ गंध को सूंघने की क्षमता । १२. दूर-श्रवण- दूरस्थ शब्द को सुनने की क्षमता । १३. चारण और आकाशगामित्व (२) सब अंगों से सुनने की क्षमता । (३) अनेक शब्दों को एक साथ सुनने और उनका अर्थ -- बोध करने की क्षमता । Jain Education International ० जंघा - चारण-सूर्य की रश्मियों का आलंबन ले आकाश में उड़ने की क्षमता । एक ही उड़ान में लाखों योजन दूर तथा हजारों योजन ऊंचा चला जाना । धरती से चार अंगुल ऊपर पैरों को उठाकर चलना । ० व्योम - चारण- पद्मासन की मुद्रा में आकाश में उड़ने की क्षमता । ० जल- चारण- जल के जीवों को कष्ट दिए बिना समुद्र आदि जलाशयों पर चलने की क्षमता । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
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