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जैन दर्शन और विज्ञान आदि से भी प्राप्त होती है और वनौषधि के प्रयोग से भी प्राप्त होती है। दूरदर्शन, पूर्वजन्म की स्मृति आदि ऋद्धियां वनौषधि से भी उपलब्ध होती हैं। इसलिए वे पौद्गलिक हैं । वे मंत्र-साधना के द्वारा भी प्राप्त होती हैं। ध्वनि के स्पंदन और उसमें उत्पन्न होने वाली विद्युत् से शरीर और मन में अनेक परिवर्तन होते हैं। मंत्र, औषधि आदि से जो ऋद्धियां उपलब्ध होती हैं, वे आध्यात्मिक प्रक्रिया नहीं हैं। लब्धियों की विचित्र शक्ति
तीन शब्द हैं-मनोबली, वचनबली, और कायबली। जिस साधक को मनोबल लब्धि प्राप्त होती है वह अंतर्महर्त में चौदह पूर्वो का परावर्तन कर सकता है। 'पूर्व' अथाह ज्ञान के भंडार हैं। उनका परावर्तन ४८ मिनिट में करना विशिष्ट शक्ति का द्योतक है। जिसे वचन लब्धि प्राप्त है वह पूर्व की ज्ञानराशि का उच्चारण अंतर्मुहूर्त में कर सकता है। यह बात बुद्धिगम्य नहीं होती, किंतु कम्प्यूटर के आविष्कार ने इस बात को बुद्धिगम्य बना डाला, समस्या का हल कर डाला। कम्प्यूटर एक सेकण्ड में एक लाख छियासी हजार गणित के भागों (विकल्पों) का गणित कर लेता है। विद्युत् की जितनी गति है, उसके अनुसार वह कार्य कर लेता है। विद्युत् की गति एक सेकण्डं में १,८६,००० मील की है। इतनी ही तीव्र गति से कम्प्यूटर गणित के विकल्पों का गणित कर लेता है। विद्युत् की गति से चलने वाला कम्प्यूटर एक सेकण्ड में इतना काम कर सकता है तो चतुर्दशपूर्वी एक अंतर्मुहूर्त में सारे ज्ञान का पारायण या उच्चारण क्यों नहीं कर सकता? कम्प्यूटर के पास विद्युत् की शक्ति है तो चतुर्दशपूर्वी के पास तैजस शक्ति है। उसक तैजस शरीर इतना विकसित हो जाता है, उसकी दैहिक विद्युत् इतनी तीव्रगामी हो जाती है कि वह यह काम सहजता से कर सकता है। तैजस की विद्युत् इस विद्युत् से अधिक शक्तिशाली होती है। इतना होने पर भी हम अपौद्गलिकता की सीमा में नही जा सकते। चाहे कम्प्यूटर की त्वरित शक्ति हो, चाहे चतुर्दशपूर्वी की त्वरित शक्ति हो, यह है सारी पौद्गलिक सीमा में। कम्प्यूटर विद्युत् की धारा के सहारे अपना कार्य करता है और चतुर्दशपूर्वी तैजस शरीर की विद्युत-धारा के सहारे अपना कार्य करता है। विद्युत्-धारा भी पौद्गलिक है और तैजस शरीर भी पौद्गलिक है वे अ-पौद्गलिक नहीं है।
__ लब्धि, ऋद्धि, योगज उपलब्धि, प्रातिहार्य, अतिशय, वचनातिशय आदि का जितना विशद विवेचन जैन साहित्य में उपलब्ध है, उतना अन्यत्र दुर्लभ है। इस वर्णन का सार यह है कि चेतना की आंतरिक शक्तियों को विकसित कर समस्त पौद्गलिक जगत् को प्रभावित किया जा सकता है। चेतना-जनित भौतिक बल जिसे "Psycho-physical Force'' कहा जा सकता है के विभिन्न प्रभाव उक्त लब्धि १. जैन आगमों के ग्रन्थ-विशेष
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