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जैन दर्शन और विज्ञान
अपने शरीर के विशिष्ट केन्द्रों को चुम्बकीय क्षेत्र नहीं बना लेता, एलेक्ट्रो-मेग्नेटिक फिल्ड नहीं बना लेता, तब तक उसमें पारदर्शन की क्षमता नहीं जाग सकती । आज के पैरासाईकोलॉजिस्ट टेलीपैथी का प्रयोग करते हैं। टैलीपैथी का अर्थ है- विचार - संप्रेषण । एक आदमी कोसों की दूरी पर है। उससे बात करनी है, कैसे हो सकती है? आज तो टेलीफोन और वायरलेस का साधन है । घर बैठा आदमी हजारों कोसों पर रहने वाले अनके व्यक्तियों से बात कर लेता हैं प्राचीन काल में ये साधन नही थे, टेलीपैथी शब्द भी नहीं था । यह अंग्रेजी का शब्द है । उस समय विचारों को हजारों कोस दूर भेजना विचार संप्रेषण की प्रक्रिया से होता था । जैसे एक योगी है उसका शिष्य पांच हजार मील दूरी पर बैठे अपने शिष्य को कुछ बताना चाहता है, उससे बातचीत करना चाहता है तो विचार संप्रेषण की साधना की जाती जिससे विचारों का आदान-प्रदान हो जाता था ।
अतीन्द्रिय चेतना: विकास की प्रक्रिया
विकास के क्रम के अनुसार प्रत्येक प्राणी में चेतना अनावृत होती है। इन्द्रिय, मानसिक और बौद्धिक चेतना के साथ-साथ कुछ अस्पष्ट या धुंधली - सी अतीन्द्रिय चेतना भी अनावृत होती है । पूर्वाभास विचार - संप्रेषण आदि उसी कोटि के हैं । अतीन्द्रिय चेतना की प्रारम्भिक अवस्था - - पूर्वाभास, अतीतबोध और उसकी विकसित अवस्था की सीमा को समझा जा सकता है । मनः पर्यवज्ञान या परचित्तज्ञान भी अतीन्द्रिज्ञान है । विचार-संप्रेषण विकसित इन्द्रिय-चेतना का ही एक स्तर है । उसे अतीन्द्रिय ज्ञान कहना सहज-सरल नहीं है । विचार - संप्रेषण की प्रक्रिया में अपने मस्तिष्क में उभरने वाले विचार - प्रतिबिम्बों के आधार पर दूसरे के विचार जाने जाते हैं। प्रत्येक विचार अपनी आकृति का निर्माण करता है । विचार का सिलसिला चलता है तब नई-नई आकृतियां निर्मित होती जाती हैं और प्राचीन आकृतियां विसर्जित हो, आकाशिक रेकार्ड में जमा होती जाती हैं। मनः पर्यवज्ञानी उन आकृतियों का साक्षात्कार कर संबद्ध व्यक्ति की विचारधारा को जान लेता है । उसमें अतीत, वर्तमान और भविष्य के विचारों को जानने की क्षमता होती है । मानसिक चिन्तन के लिए उपयुक्त परमाणुओं की एक राशि होती है । वह परमाणु राशि हमारे चिन्तन में सहयोग करती - है । उसके ग्रहण किए बिना हम कोई भी चिंतन नहीं कर सकते। उस राशि के परमाणुओं के भावी परिवर्तन के आधार पर मनः पर्यवज्ञानी भविष्य में होने वाले विचार को भी जान सकता है 1
मनुष्य का व्यक्तित्व दो आयामों में विकसित होता है । उसका बाहरी आयाम विस्तृत और निरंतर गतिशील होता है । उसका आन्तरिक आयाम संकुचित और निष्क्रिय होता है। उसके बाहरी आयाम की व्याख्या स्थूल शरीर, वाणी, मन और बुद्धि
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