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________________ जैन दर्शन और परामनोविज्ञान १२१ एक प्रत्यक्षदर्शी के अनुसार उसकी अंगुलियां जैसे किसी ऐसी वस्तु पर, जो केवल कार्ल को दिखाई देती थी, फिरने लगीं। इसी क्षण उसने लिखा-गोल. धात निर्मित, चमकती हई, घेरे जैसी लगती है।'' इसके बाद जब कामेंस्की ने एक पेचकस का बिंब भेजना चाहा तो कार्ल निकोलायेव ने तत्क्षण लिखा-“लंबा, पतला. ..धातु.....प्लास्टिक..... काला प्लास्टिक।" मास्को-साइबेरिया के बीच हुए इस परचित्त बोध के परीक्षण की सोवियत सघ में व्यापक प्रतिक्रिया हुई और अतीन्द्रिय बोध सम्बन्धी और अनेक परीक्षण विभिन्न विज्ञानियों द्वारा किए गए। १९७१ में, अपोलो १४ के एक अन्तरिक्ष यात्री एडगर मिशेल पहले ऐसे व्यक्ति हुए, जिन्होंने कि अन्तरिक्ष व पृथ्वी के बीच अतीन्द्रिय बोध संबंधी परीक्षण किए। ___ चन्द्रमा पर कदम रखने वाले व्यक्ति मिशेल अन्तरिक्ष विज्ञानों में तीन 'डाक्टरेट' की उपाधियां अर्जित कर चुके थे। अनेक वर्षों से आपकी परामनोविज्ञान में विशेष रुचि रही है। जब आपका चन्द्रमा पर जाना निश्चित हुआ तो आपने इस परचित्तबोध की दूरी से जांच करने के लिए एक सुअवसर भी पाया। आपने जैनर कार्ड्स का उपयोग करते हुए पृथ्वी पर चार व्यक्तियों को उनके चिह्न संप्रेषित करने का प्रयास किया। डॉ. राइन व अमेरिकन सोसाइटी फॉर साइकिकल रिसर्च के डॉ. कार्लिस ओसिस ने इन प्रयोगों के परिणामों का विश्लेषण करके यह बताया कि इनसे पूर्वाभास का साक्ष्य मिलता है। अतीन्द्रिय प्रत्यक्षण संबंधी इन अनेक प्रयोगों से यह तो सिद्ध हो गया कि 'अतीन्द्रिय प्रत्यक्षण' एक वास्तविकता है, मात्र कपोल-कल्पना नहीं। किन्तु इसकी प्रकृति के सम्बन्ध में अभी भी अनेक प्रश्न है जिनके या तो आधे-अधूरे उत्तर ही मिल पाये हैं या जो अभी सर्वथा अनुत्तरित ही हैं। अतीन्द्रिय प्रत्यक्षण की क्षमता कब-किन परिस्थितियों में उत्पन्न की जा सकती है? क्या इस पर किसी प्रकार से नियंत्रण किया जा सकता है? यह धीरे-धीरे कम क्यों हो जाती हैं? किस प्रकार के व्यक्तियों में यह क्षमता अधिक या कम पाई जाती है? आदि-आदि अनेक प्रश्न हैं, जिनका समुचित समाधान खोजना अभी बाकी है। १९५० से १९८२ के बीच इस तरह के प्रश्नों की कतार और लंबी हो गई है। नये प्रयोगों से जितने उत्तर मिले हैं कदाचित् उनसे अधिक अचिन्हे क्षेत्र उजागर हुए हैं। विचार-संप्रेषण ओकल्ट साइन्स के वैज्ञानिकों ने यह तथ्य प्रगट किया कि आदमी जब तक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
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