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जैन दर्शन और विज्ञान स्थित एक प्रयोगशाला में रखा। यहां उनके मस्तिष्क में उन्होंने इलैक्ट्रोड्स लगा दिए। जब पनडुब्बी सागर में काफी नीचे चली गई तब उसमें मौजूद सहायकों ने एक-एक करके उन छौनों को मारना शुरू किया । मादा खरगोश को कुछ पता नहीं था कि क्या हो रहा है। बच्चों की मृत्यु कब हुई यह सब जानने का उसके पास कोई उपाय न था। फिर भी प्रत्येक छौने की मृत्यु के क्षण उसकी मां के मस्तिष्क में अजीब-सी प्रतिक्रिया हुई ।”
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१९६६ में सुविख्यात 'द् ग्रेण्ड मोस्को - साइबेरिया टैलीपेथी टेस्ट' संपन्न किया गया था। इसका एक रोचक विवरण 'साइकिक डिस्कवरीज बिहाइंड द् आइरन कर्टेन' प्रस्तुत किया गया है :
१९ अप्रैल, १९६६ की बात है । परिचित्त - बोध के परीक्षण के लिए कार्ल निकोलायेव को मास्को से साइबेरिया जाना पड़ा । साइबेरिया के विज्ञान - नगर के नाम से विख्यात नोवोसिब्रिस्क हवाई अड्डे पर जैसे ही कार्ल अपने विमान से उतरा उसे लगा जैसे बीसियों जोड़ी आंखें आकर उससे चिपक गई हैं। हर जोड़ी आंख में एक अलग किस्म का भाव है-किसी में जिज्ञासा, किसी में उपहास । कार्ल को यह सब स्वाभाविक लगा। वह जानता था कि बिना प्रत्यक्ष अनुभव किए लोग विश्वास ही नहीं करेंगे कि वह मास्को से भेजे गए परचित्त संदेशों को सूदूर साइबेरिया में ग्रहण कर सकता है । वह पूरे विश्वास से परीक्षण के लिए तैयार हो गया ।
साइबेरिया की ठण्डी सन्नाटे भरी आधी रात कार्ल 'गोल्डन वैली होटल' के एक कमरे में कुछ सोवियत वैज्ञानिकों के साथ बैठा था। कमरे में मौन छाया हुआ था। उधर सैकड़ों मील दूर मास्को के पूर्णतः पृथक् और 'इन्सुलेटेड' कक्ष में यूरी कास्की कुछ वैज्ञानिकों के साथ बैठा हुआ था । यूरी को यह कतई नहीं मालूम था कि उसे कार्ल को किस आशय का परचित संदेश भेजना है ।
कुछ ही क्षण बाद क्रेमलिन की घड़ी ने आठ बजाये और कक्ष में मौजूद एक विज्ञानी ने कास्की को एक सील बन्द पैकेट दिया । पैकेट में धातु की बनी एक मानी थी जिसमें सात घेरे थे । कास्की के शब्दों में- "मैंने कमानी को उठाया व उसके घेरे पर अंगुलियां फिराने लगा। मैंने कोशिश की कि कमानी के चित्र को पूरी तरह अपने में जज्ब कर लूं । साथ ही मैंने निकोलायेव के चेहरे को भी याद किया । मैंने कल्पना की कि जैसे निकोलायेव मेरे सामने बैठा है। इसके बाद मैंने कल्पना की की मैंने कार्ल निकोलायेव के एक कन्धे के पीछे से कमानी को देख रहा हूं। फिर मैंने कल्पना की कि मैं उसी (कार्ल निकोलायेव की ) आंखो से कमानी को देख रहा हूं।"
“इसी क्षण उधर एक हजार आठ सौ साठ मील दूर कार्ल तनाव से भर गया ।
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