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________________ जैन दर्शन और परामनोविज्ञान १९६० के लगभग एक चैकोस्लोवाकी भौतिकशास्त्री, जीव-रसायन-शास्त्री व परामनोविज्ञानी डॉ. मिलान रिज्ल ने कुछ व्यक्तियों को सम्मोहित करके उनमें अतीन्द्रिय प्रत्यक्षण की क्षमता विकसित करने का प्रयास किया। अपनी एक विशिष्ट विधि द्वारा आप एक युवक पावेल स्टैपनेक के साथ ऐसा करने में सफल भी हुए। पावेल की क्षमता की जांच करने अनेक देशों से परामनोविज्ञानी प्राग पहुंचे व उसे अनेक देशों की प्रयोगशालाओं में ले जाकर परीक्षण किया गया। पावेल सभी प्रयोगों में सफल रहा। किंतु एक विचित्र बात यह देखी गई कि पावेल कुछ विशेष प्रकार के प्रयोगों में व अपने प्रिय पत्तों का उपयोग में लिए जाने पर अवश्य सफल होता था। कुछ पत्तों को वह उन्हें चाहे जितने और चाहे जैसे लिफाफों में बन्द किये जाने पर भी सही-सही पहचान लेता था। ऐसा स्पष्ट संकेत मिलता है कि सम्मोहन द्वारा कुछ व्यक्तियों में अतीन्द्रिय प्रत्यक्षण की क्षमता उत्पन्न की जा सकती है।) १९६८ में डॉ. थेलमा मॉस ने अपने प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध किया कि भावात्मक (इमोशनल) सामग्री का संप्रेषण भावहीन की अपेक्षा अधिक मात्रा व अधिक स्पष्ट रूप में होता है। १९६२ में माइमोनीडिस डॉ. मोन्टेग्यू उलमान ने डॉ. गार्डनर मर्फी के सहयोग से एक 'ड्रीम लेबोरेटरी'-स्वप्न प्रयोगशाला मात्र परामनोवैज्ञानिक शोधकार्य हेतु स्थापित की। १९६४ में डॉ. स्टेनले क्रिपनेर के साथ यहां पर बहुत-से ऐसे प्रयोग किए गए जिनमें कि सोते हुए व्यक्ति के स्वप्नों को अन्य कमरे में किन्हीं कलाकृतियों पर ध्यान केन्द्रित करके प्रभावित करने की चेष्टा की गई। प्रयोगों से सफलतापूर्ण परिणाम प्राप्त हुए। अब यहां अतीन्द्रिय प्रत्यक्षण के अन्य पहलुओं पर शोध चल रहा है। उधर रूस में लेनिनग्रेड विश्वविद्यालय में शरीरविज्ञान विभाग के अध्यक्ष व लेनिन पुरस्कार विजेता लियोनिड एल. वासिलियेव ने १९६० में एक सभा में उपस्थित रूस के वैज्ञानिकों को इस घोषणा से चौंका दिया कि वे लम्बे अरसे से परचित्त बोध शक्ति द्वारा सम्मोहन-सुझाव के प्रयोग करते रहे हैं। उन्होंने कहा कि “अमरीकी नौसेना आज अपनी आणविक पनडुब्बियों से परचित्त बोध शक्ति द्वारा संदेश भेजने का प्रयोग कर रही है, लेकिन सोवियत विज्ञानियों ने २५ वर्षे पूर्व ही इस तरह के अनेक सफल परीक्षण कर डाले हैं। ___सोवियत विज्ञानियों द्वारा जलमग्न पनडुब्बी व भूमि के बीच जो परीक्षण किया गया था वह मानव पर नहीं किया गया था। यह प्रयोग एक मादा खरगोश व उसके नवजात छौनों पर किया गया था। 'वैज्ञानिकों ने पनडुब्बी के छौनों को रखा और उनकी मां को तट पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
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