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________________ जैन दर्शन और परामनोविज्ञान १०३ द्योतक है। इसी प्रकार ब्राजील की एक अन्य घटना में पोलो नामक बच्चा तीन चार वर्ष की आयु में सिलाई कला में असामान्य दक्षता रखता था, जिसका सम्बन्ध उसके पूर्व-जन्म के व्यक्तित्व के साथ जोड़ा जा सकता है, जिसमें वह एमिलिया नामक लड़की के रूप में था तथा इस कला में दक्ष था । ' इन सब बातों के अतिरिक्त धार्मिक श्रद्धा या विश्वास, भय, सेक्सुअल ज्ञान, वैर-विरोध आदि भावनाओं की असामान्य प्रबलता भी ऐसे बालकों में पाई जाती है । जिनका वर्तमान जीवन के किसी असामान्य घटना-प्रसंग, वातावरण या जानकारी से कोई सम्बन्ध नहीं है । जैसे रविशंकर नामक बालक अपने वर्तमान जन्म में अपने पूर्व - जन्म के हत्यारों से भय भी रखता है और उनके प्रति क्रोध भी करता है । आधुनिक मनोविज्ञान जिन सिद्धांतों के आधार पर मनुष्य की मानसिक वृत्तियों और भावनाओं की व्याख्या प्रस्तुत करता है, वे उक्त सामान्य मनोवैज्ञानिक तथ्यों का कोई समाधान नहीं देता । प्रत्युत इन असामान्य मनोवृत्तियों और विलक्षणताओं के लिए पूर्व- - जन्म के संस्कारों की परिकल्पना अपने आप में पूर्ण और बुद्धिगम्य समाधान प्रस्तुत करती हैं । यद्यपि सामान्य रूप से पूर्व जन्म और वर्तमान जन्म में लैंगिक समानता पाई जाती है, फिर भी कुछ घटनायें (लगभग १० प्रतिशत ) ऐसी भी सामने आई हैं, जिनमें जातक पूर्व-ज - जन्म में स्त्री होता है और वर्तमान जन्म में पुरुष बन जाता है या पूर्व जन्म में पुरुष होता है और वर्तमान जन्म में स्त्री बन जाता है । जैसे सिलोन में घटित एक घटना में ज्ञानतिलका नामक लड़की अपने को पूर्व जन्म में तिलकरत्न नामक लड़के के रूप में बताती है। ब्राजील में घटित पोलो की घटना की चर्चा हम कर चुके हैं । ऐसे लैंगिक परिवर्तनों में व्यक्ति में वर्तमान जीवन में अपने पूर्व- जन्म की लैंगिक विलक्षणता भी पाई गई है, जो मनोवैज्ञानिक के लिए अवश्य ही प्रश्नचिह्न है । सबसे अधिक आश्चर्यजनक एवं अव्यारव्येय बात ऐसी घटनाओं में पाई जाती है, वह है- वर्तमान जीवन में बालक के शरीर पर पाये जाने वाले विचित्र चिह्न या शारीरिक अपूर्णता जो जन्म से ही जातक के शरीर में पाई जाती है और जिनका सम्बन्ध उनके अपने पूर्व जन्म में घटित घटनाओं के साथ बताया जाता 1 जैसे - रविशंकर नामक बालक के शरीर में गर्दन पर एक दो इंच लम्बा तथा १/४ या १/८ इंच चौड़ा घाव का चिह्न डॉ. स्टीवनसन ने स्वयं सन् १९६४ में देखा था, जिस समय रविशंकर की आयु १३ वर्ष की थी। डॉ. स्टीवनसन को बताया गया कि १. देखें, पृष्ठ ९६-९८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
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