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जैन दर्शन और विज्ञान है, तब माता-पिता या पारिवारिक लोगों का ध्यान उस ओर केन्द्रित होता है। बहुत बार तो वे स्वयं ही पूर्व-जन्म के घटना स्थल पर पहुंच जाते हैं तथा बालक द्वारा बताई गई बातों की सत्यता जांच करते हैं। कभी-कभी ऐसा नहीं हो पाता। गवेषक लोगों तक जब ऐसी बात पहुंचती है, तब वे जांच हेतु बालक के घर पहुंच जाते हैं। वहां वे उसका पूरा बयान ले लेते हैं तथा माता-पिता, पारिवारिक-जन अड़ौसी-पड़ौसी आदि के भी बयान लेते है। इसके अतिरिक्त भी जिन व्यक्तियों का सम्बन्ध घटना से होता है, उन सबके बयान ले लिये जाते हैं। फिर जिस स्थान में बालक अपना पूर्व जन्म आदि बताता है, वहां जाकर उन परिवारवालों के बयान लिये जाते हैं। बयानों के साथ-साथ गवेषक लोग प्रश्नों और प्रतिपादनों के द्वारा भी तथ्य एकत्रित करते हैं। बयानों और साक्षियों के परीक्षण के पश्चात् जो तथ्य उभरते हैं, उन पर चिन्तन किया जाता है।
चिंतन के लिए कई सम्भावनायें की जाती हैं। सबसे पहले तो धोखाधड़ी या पूर्व नियोजित होने की सम्भावना को लेकर तथ्यों पर चिन्तन किया जाता है-सारे बयान, साक्षियों के उत्तर, घटनास्थलों की भौगोलिक परिस्थिति आदि के आधार पर यह निश्चित करना कठिन नहीं होता कि घटना वास्तविक है या धोखा देने के लिए घड़ी हुई है। अब तक जिन घटनाओं की जांच की गई है, उसमें धोखा-धड़ी की घटनाएं नगण्य संख्या में पाई गई है। उन अनेक वृत्तांतो जिनमें कि दोनों व्यक्तियों के निवासों में सैकड़ों या हजारों मील की दूरी रही हो, किसी प्रकार आर्थिक लाभ होना सम्भव न रहा हो, और पूर्वजन्म की स्मृतियां वर्णित करने वाला कोई अबोध बालक ही रहा हो-जैसा कि प्राय: होता है, यह मानना उचित नहीं लगता कि वे सभी वृत्तांत मनघड़त किस्से ही हैं। जिन वृत्तांतों में दोनों के जन्म के व्यक्तियों में कुछ समान योगयाताएं या शारीरिक निशान आदि पाये गये हैं, उनकी भी व्याख्या इस उपकल्पना द्वारा सम्भव नहीं है।
दूसरी संभावना यह की जाती है कि दोनों परिवारों के बीच प्रत्यक्ष या परोक्ष किसी प्रकार का सम्बन्ध है या नहीं । जहां इस प्रकार की संभावना होती है, वहां पूर्व-जन्म सम्बन्धी बातों को इस कसौटी पर कसा जाता है कि ये बातें वस्तुत: पूर्व-जन्म-स्मृति पर आधारित है या वर्तमान जन्म में ही किसी माध्यम से ज्ञात की गई है। जहां दोनों परिवारों में समान्य मित्र, सम्बन्धी आदि होते है, वहां इस बात को बहुत सूक्ष्मता से तोला जाता है। विस्मृति
ऐसे वृत्तांतों में यह सम्भावना भी की जाती है कि वास्तविक स्रोत की विस्मृति के कारण बालक अपने पूर्वजन्म के अनुभव के रूप में उसे मानने लगा हो।
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