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जैन दर्शन और परामनोविज्ञान
यह सम्भावना भी ऐसे वृत्तांतों के लिए ही अधिक महत्त्वपूर्ण है जिनमें कि बालक या उसके परिवार वालों के लिए वर्णित मृतक के बारे में बहुत-सी जानकारी प्राप्त करना सम्भव रहा हो। (कुछ ऐसे वृत्तांतों जिनमें कि दोनों व्यक्ति एक ही परिवार के थे या निकट ही रहने वाले थे ऐसा होना सहज ही सम्भव है किंतु सुदूर स्थित एक अत्यन्त सामान्य-सा जीवन व्यतीत किये हुए व्यक्ति के बारे में बहुत-सी जानकारी(व्यक्तिगत व अन्य प्रकार की) प्राय: किसी को नहीं होती। जिनमें जानकारी संभव रही हो उन वृत्तांतों के भी व्यवहार सम्बन्धी तथ्यों की व्याख्या इस उपकल्पना द्वारा नहीं की जा सकती । इस तरह के वृत्तांत ही अधिक हैं जिनमें यह कहा गया है कि पूर्वजन्म वाले परिवार से इस जन्म के परिवार वालों का किसी भी तरह का परिचय था ही नहीं।
___ कई बार ऐसा हुआ है कि बालक ने अकस्मात् ही किसी पूर्वजन्म सम्बन्धी व्यकित को भीड़ में से पहचान लिया, और उसे नाम लेकर पुकार लिया, या कि जब किसी ने बालक से पूछा-अच्छा बतलाओ मैं कौन हूं? उसने सही उत्तर दे दिया। ऐसे दृष्टांतों के लिए भी विस्मृति की उपकल्पना उपयुक्त नहीं बैठती। आनुवंशिक स्मृति
इस उपकल्पना द्वारा भी दो प्रकार के वृत्तांतों की व्याख्या ही संभव है-एक तो वे वृत्तांत जिनमें कि वर्तमान व पूर्वजन्म के दोनों व्यक्ति एक ही परिवार के व भिन्न-भिन्न पीढ़ी के हों। ऐसे वृत्तांतों वास्तव में हैं ही बहुत कम। दूसरे वे वृत्तांत जिनमें कि दोनों जन्मों के बीच समय का बहुत लम्बा अन्तराल सदियों तक का रहा हो। इस प्रकार के वृत्तांत और भी कम-बिरले ही होते हैं।
फिर भी यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि आनुवंशिक रूप में स्मृतियों का हस्तांतरण इस सीमा तक तो वैज्ञानिकों द्वारा नहीं खोजा जा सका है।
__ जिन घटनाओं में उक्त संभावना का भी कोई स्थान नहीं रह जाता, वहां यह भी एक संभावना की जाती है कि अतीन्द्रिय ज्ञान या टेलीपेथी (विचार-संप्रेषण या दूरज्ञान) की सहायता से कोई दूसरे व्यक्ति के जीवन की बात बताता हो। अतीन्द्रिय प्रत्यक्षण शक्ति
किसी व्यक्ति के अतीन्द्रिय ज्ञान की शक्ति के द्वारा किसी मृत व्यक्ति सम्बन्धी जानकारी प्राप्त करके उसे पूर्वजन्म की स्मृति के रूप में वर्णित करने की सम्भावना महत्त्वपूर्ण तो है और कदाचित् कुछ वृत्तांतों की व्याख्या इस उपकल्पना द्वारा भी की जा सके-किन्तु निस्सन्देह बहुत से ऐसे वृत्तांत हैं, जिनकी पूर्णत: व्याख्या इस उपकल्पना द्वारा नहीं की जा सकती।
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