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________________ जैन दर्शन और परामनोविज्ञान ९७ लिंग का बनाता है और इस बात से कि उसने वे तीनों चित्र कैसे बनाये हैं। पोलो ने पहली और तीसरी दोनों 'छूटों' में स्त्री के चित्र बनाये। उक्त घटना के एकदम विपरीत ऐसे भी अनेक दृष्टांत प्राप्त हुए हैं जिनमें वर्तमान जन्म की लड़की ने अपना पूर्वजन्म लड़के के रूप में वर्णित किया है। पूर्वजन्म के वृत्तातों में कभी-कभी ऐसा वृत्तांत भी मिल जाते हैं, जिनमें मात्र पिछले एक ही नहीं उससे भी पहले के और जन्मों की स्मृतियों का विवरण प्राप्त होता है। गवेषणा-पद्धति परामनोवैज्ञानिक या तो स्वयं घटना-स्थल पर जाता है या अपने किसी सहायक अन्वेषक को वहां भेजकर और विश्वसनीय सूचनाएं प्राप्त करने का प्रयत्न करता है। सभी प्रकार की सूचनाएं एकत्रित कर लेने के बाद परामनोवैज्ञानिक निम्न बातों को ध्यान में रखकर सारे केस का मूल्यांकन करता है : १. सभी प्राप्त सूचनाएं कहां तक विश्वसनीय हैं? । २. क्या तथाकथित पूर्वजन्म की स्मृतियों में निहित तथ्यों की जानकारी सम्बन्धित व्यक्ति के लिए सामान्यत: प्राप्त कर पाना संभव था? ३. सम्बन्धित व्यक्ति द्वारा परासामान्य ज्ञान शक्तियों से यह सूचनाएं प्राप्त करना कहां तक सम्भव था? ४. क्या सम्बन्धित व्यक्ति ने इन स्मृतियों का वर्णन किसी विशेष अवस्था जैसे तन्द्रा या अचेतनावस्था में ही वर्णित किया था, आदि? ___सामान्य रूप से पूर्व जन्म की स्मृति छोटे बच्चों में होती है। अढ़ाई-तीन वर्ष की अवस्था से लेकर आठ-दस वर्ष की अवस्था के बच्चे ही आम तौर पर इस क्षमता के धनी पाये गये हैं। कहीं-कहीं तो दस महीने की आयु में भी बच्चा यत्किचिंत अभिव्यक्ति देना शुरू कर देता है। आयु बढ़ने के साथ साधारणतया यह क्षमता क्षीण होती जाती है। अपवाद रूप में बड़ी आयु वालों में भी पूर्व-जन्म-स्मृति उपलब्ध होती हुई पायी जाती है। आम-तौर से पूर्व-जन्म-स्मृति वाला बच्चा जब बोलना सीख जाता है, तब वह अपने पूर्वजन्म के विषय में कुछ-कुछ बातें बताना शुरू कर देता है। प्राय: तो माता-पिता ऐसी बातों पर ध्यान ही नहीं देते या उसे केवल प्रलाप या बकवास समझ लेते हैं। पर, जब वह अपनी बात को दोहराता ही रहता है या बल देता रहता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
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