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________________ ९६ जैन दर्शन और विज्ञान लोरेंज ने एक पुत्र को जन्म दिया। उसका नाम भी उन्होंने इमिलिया ही रखा, लेकिन बाद में सब से 'पोलो' कहकर ही पुकारने लगे। मृत इमिलिया व पोलो की अनेक प्रवृतियों व रुचियों में समानताएं पाई गई। इमिलिया को यात्रा करने का बड़ा शौक था। वह अक्सर ही कहा करती थी कि यदि वह पुरुष होती तो खूब नये-नये स्थानों की सैर करती। (उस जमाने में वहां स्त्रियों को घूमने-फिरने की सुविधाएं नहीं थीं।) पोलो को भी भ्रमण का बहुत शौक है-अपनी छुट्टियां वह प्राय: फिरने में ही व्यतीत करता है। इमिलिया सिलाई में बहुत निपुण थी और पोलो में, जब वह चार वर्ष के लगभग का ही था-बिना सीखे सिलाई में निपुणता पाई गई। इमिलिया वायलिन सीखने की इच्छुक थी, किन्तु प्रयत्न करने पर भी सीख नहीं पाई। पोलो ने भी बहुत प्रयास किया किन्तु असफल ही रहा। इमिलिया में डबलरोटी के कोने तोड़ने की एक विचित्र-सी आदत थी-ठीक यही आदत पोलो में भी पाई गई। पोलो के वृत्तांत में पुनर्जन्म में लिंग-परिवर्तन की विशेषता के अनेक प्रभाव स्पष्टत: देखे गये हैं। पोलो की बहिनों ने बताया कि जब वह छोटा था, तो उसकी बातें प्राय: लड़कियों जैसी ही हुआ करती थीं। एक दिन वह बोला: "क्या मैं सुंददर नहीं हूं? अब मैं लड़कियों की तरह ही रहा करूंगा। मैं लड़की जो हूं।' लड़का होते हुए भी उसे लड़कियों के साथ गुड़ियों से खेलना बहुत प्रिय था। प्रथम चार-पांच वर्षों तक तो उसने लड़कों के वस्त्र पहने ही नहीं-सदा तीव्र प्रतिरोध करता रहा। जब वह पांच वर्ष का था तो इमिलिया की एक पुरानी स्कर्ट को कांट-छांटकर उसके लिए एक पैंट बना दी गई। इसे पहनकर वह बहुत प्रसन्न हुआ और उसके बाद से लड़कों के वस्त्र पहनने के विरुद्ध उसका प्रतिरोध समाप्त हो गया। १३-१४ वर्ष की आयु तक उसमें यदा-कदा स्त्रीत्व के लक्षण दृष्टि-गोचर हो जाते थे। १९६२ में, जब पोलो ३९ वर्ष का हो चुका था, उसके व्यक्तित्व में इस उम्र के अन्य पुरुषों की अपेक्षा नारी-तत्त्वों की अधिक प्रमुखता पाई गई। और अपनी बहिनों के अतिरिक्त उसका किसी अन्य स्त्री से कोई लगाव नहीं था। उसने विवाह तक नहीं किया। पोलो के व्यक्तित्व की और गहरी जांच हेतु मानव शरीर के चित्र बनाने संबंधी उसका एक परीक्षण किया गया। इस परीक्षण में परीक्षार्थी को मानव शरीर का तीन बार चित्र बनाने को कहा जाता है। पहला चित्र वह किस लिंग का-स्त्री या पुरुष का-बनाये, इसके लिए उसे छूट होती है। दूसरा चित्र उसे विपरीत लिंग का बनाने को कहा जाता है और तीसरे चित्र के बारे में पुन: छुट होती है। परीक्षा का परिणाम इस बात से आंका जाता है कि परीक्षार्थी पहला व तीसरा चित्र किस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
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