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________________ जैन दर्शन और परामनोविज्ञान तथा उसने भी अपना पूर्व जन्म भारत में बताया । अहमदाबाद में एक बालक मनोज द्वारा अपने पूर्व जन्म के समग्र परिवार को पहिचानने की बात सामने आई । मनोज ने, जो कि सातेक वर्ष का बालक था, अपने पूर्व जन्म की पत्नी तथा दो बच्चों के विषय में जानकारी दी तथा उन्हें इस जन्म में पहिचान लिया । मनोज के शरीर पर गोली के चिह्न भी थे, जो उसके बयान के 'अनुसार उसके पिछले जन्म में लगी थी। मनोज का एक हाथ बड़े आदमी की तरह पूरी तरह मोटा और विकसित था तथा दूसरा हाथ साधारण बच्चे की तरह था । जयपुर की एक लड़की अमिता (उम्र लगभग १० वर्ष) अपनी छोटी उम्र से ही अपने को महारानी गायत्रीदेवी कॉलेज की एम. ए. की पोलिटिकल साइन्स विषय की छात्रा बताती थी। उसने अपने पुराने घर और परिवार को खोज निकाला तथा छत पर से गिरने के कारण अपनी मृत्यु का बयान दिया, जो जांच करने पर सही पाया गया। पूर्वजन्म संबंधी अनेक ऐसे वृत्तांत पाये गये हैं जिनमें लिंग परिवर्तन वर्णित किया गया है। ब्राजील के पोलो लारेंज का यह वृत्तांत इसी तरह के वृत्तांतो में से है: "मां अब तुम मुझे अपने पुत्र के रूप में लो, अब मैं तुम्हारा पुत्र बनकर जन्म लूंगी।'' श्री मति इडा लोरेंज नामक एक महिला को तीन बार मृतात्मा आह्वन संबंधी बैठकों (सियान्स) में यह संदेश मिला । संदेश देने वाली, कोई और नहीं, उन्हीं की पुत्री इमिलिया की कथित मृतात्मा थी । इमिलिया लोरेंज एफ. बी. लोरेंज व इडा लोरेंज की दूसरी संतान व सबसे बड़ी पुत्री थी। उसका जन्म ४ फरवरी १९०२ को हुआ था। उसका नाम 'इमिलिया' उससे पूर्व उत्पन्न एक पुत्र - जिसकी कुछ वर्ष पूर्व शैशवास्था में ही मृत्यु हो गई थी - 'इमोलियो' पर रखा गया था । ९५ सभी प्राप्त सूचनाओं से ज्ञान हुआ कि अपने छोटे-से जीवन में इमिलिया सदा अत्यन्त दुःखी रही। वह हमेशा स्वयं को इस बात के लिए ही कोसती रही कि वह लड़की क्यों है, लड़का क्यों नहीं । अनेक बार उसने अपने भाई-बहिनों से कहा भी कि यदि वास्तव में पुनर्जन्म होता है तो वह अगले जन्म में पुरुष ही होगी । उसके विवाह हेतु अनेक प्रस्ताव आये, लेकिन उसने सभी को ठुकरा दिया । हीन व निराशापूर्ण भावनाओं से ग्रसित उसने अनेक बार आत्महत्या करने का प्रयास किया । एक बार विष खा भी लिया, लेकिन उसे बहुत-सा दूध पिलाकर बचा लिया गया । किन्तु अन्त में १२ अक्टूबर, १९२१ को उसने एक बहुत तेज जहर लेकर आखिर अपने जीवन का अन्त कर ही दिया । इमिलिया की मृत्यु से लगभग डेढ़ वर्ष बाद ३ फरवरी, १९२३ को श्रीमति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
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