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जैन दर्शन और विज्ञान में मेरी सखी थी। मैं (सिना-जिह्ना) अपनी सखी के घर आती-जाती रहती थी और इस दौरान मैं लीला को खिलाती थी तथा उसे गोद में उठाकर घुमाती थी। एफ. व्ही. लौरेंज के पुत्र कार्लोस की मैं (सिना-जिह्ना) धर्म-माता बनी थी। जब ईदा मेरे घर आती तो मैं उसके लिए काफी बनाती और फोनोग्राफ बजाती। मेरे पूर्वजन्म के पिता आयु में एफ. व्ही. लौरेंज से बड़े थे। लम्बी दाढ़ी रखते थे तथा बड़े कर्कश आवाज में बोलते थे। मेरी शादी नहीं हुई थी। पर मैं जिस पुरुष से प्रेम करती थी, मेरे पिताजी उसे पसन्द नहीं करते थे। उस पुरुष ने आत्म-हत्या कर ली। इसके बाद एक दूसरे व्यक्ति से मेरा प्रेम हो गया। उसे भी मेरे पिताजी पसन्द नहीं करते थे। इससे मैं बहुत दु:खी और निराश हो गई। मेरे पिता ने मुझे खुश करने के लिए समुद्रतटीय प्रदेश में घूमने-फिरने का कार्यक्रम बनाया जहां मैने अपने शरीर के प्रति लापरवाह होकर ठण्डी और नम हवा में अपर्याप्त वस्त्रों के साथ घूमना शुरू किया और उसके परिणाम स्वरूप मुझे टी. बी. की बीमारी हो गई । इस बीमारी के कुछ ही महीनों मेरी मृत्यु हो गई। जब मैं मृत्यु-शैय्या पर थी, मेरी प्यारी सखी ईदा मेरे पास थी। उस समय मैंने ईदा से बताया कि मैं जान-बूझकर बीमार हुई थी, मैं मरना चाहती थी। मरने के बाद मै तुम्हारी पुत्री के रूप में पुन: जन्म लूंगी और बोलने जितनी उम्र होने पर पूर्व जन्म की बातें तुम्हें बताऊंगी, जिससे तुम्हें विश्वास हो जाएगा कि मैं (सिला-जिह्वा) ही तुम्हारी पुत्री बनी हूं।"
सिना-जिह्ना की मृत्यु सन् १९१७ के अक्टूबर में हुई थी, जिसके लगभग दस महीने पश्चात् अर्थात् १४ अगस्त १९१८ को मार्टा का जन्म हुआ था। मार्टा ने लगभग १२० बातें अपने पूर्व जन्म के संबंध में बताई जिनमें से कुछ बातें तो ईदा (मार्टा की माता) और एफ. व्ही. लौरेंज जानते थे। कुछ बातें ऐसी भी थी जिनका इनको पता नहीं था पर उसकी पुष्टि सिना-जिह्ना के अन्य पारिवारिक सदस्यों ने की। सन् १९६२ में जब डॉ. ईयान स्टीवनसन ने मार्टा से भेंट की उस समय भी उसे अपने पूर्व जन्म की अनेक बातें याद थीं।
ऐसी एक दो या दस बीस नहीं, बारह सौ से भी अधिक घटनाएं विश्व भर में विभिन्न देशों में प्रकाश में आई हैं।
___ डॉ. कलघटगी ने भी एक सन्त सद्गुरू केशवदासजी के द्वारा बताई गई दो घटनाओं का उल्लेख किया है। एक में एक इटली के डेन्टिस्ट डॉ. गेस्टोन द्वारा अपना पूर्व जन्म भारत में कांचीपुरम स्थित किसी मंदिर के पुजारी के रूप में बताया तथा मंदिर की सम्पूर्ण पूजा-विधि का ज्ञान होने का दावा किया तथा दूसरी घटना में न्यूयार्क के एक नीग्रो व्यक्ति ने स्वामी केशवदासजी की सभा में अपनी पूर्व जन्म की स्मृति के आधार पर “ललित सहस्त्रनाम'' कण्ठस्थ रूप से सुनाना प्रारंभ किया
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