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जैन दर्शन और परामनोविज्ञान
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रोगी भी ऐसा करने लगे । अब वे स्वयं अपने चिकित्सक ही नहीं हो गये, वे उपचारकर्ता के विचारों को भी पढ़ने लगे । छुपाई हुई वस्तुओं को ढूंढ निकालने लगे- यहां तक कि सही-सही भविष्यवाणियां भी करने लगे । अन्य कई और व्यक्ति प्यूसेगर की विधि से रोगियों को इसी तरह की स्थिति में, जिसे बाद में 'सोमनाम्ब्यूल्ज्मि' (निद्राचार ) कहा गया, लाने लगे। एक व्यक्ति ने इस अवस्था में पेट से सुनने व अंगुलियों के पोरों से देखने की शक्ति प्रदर्शित की। जागृत 'सोमनाम्ब्यूलिज्म' की खोज बड़ी आकर्षक रही शीघ्र ही स्थान-स्थान पर इस तरह के प्रयोग किये जाने लगे । कुछ चिकित्सों ने ‘चुम्बकीय-निद्रा' के दौरान रोगियों पर वेदनारहित शल्य- चिकित्सा भी की । आज तो यह आम बात है किन्तु उस समय इन बातों से वैज्ञानिक क्षेत्रों में बड़ी उथल-पुथल हुई।
१८४९ के लगभग मैनचेस्टर के एक डॉ. जेम्स ब्रेड ने बहुतत-प्रयोग करके यह विचार रखा कि मैगनेटिज्म, सोमनाम्ब्यूलिज्म व सुझाव - ग्रहण - शीलता तीनों में मन की एक समान विशिष्ट अवस्था विद्यमान रहती है । ब्रेड ने ही सर्वप्रथम 'हिप्नोटिज्म' शब्द का प्रयोग प्रारम्भ किया ।
उनीसवीं शताब्दी की ही तीसरी प्रमुख विचारात्मक शक्ति जिसे हम 'परासामान्य' के अध्ययन की मुख्य प्रेरक शक्तियों में से एक मान सकते हैं वह है भौतिक विद्वानों द्वारा विकसित विश्व-संदर्भ (वर्ल्ड परस्पेक्टिव) । न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के सिद्धान्त व गति के तीन नियमों के आधार पर भौतिक शास्त्रियों व गणितज्ञों को शीघ्र ही यह लगने लगा कि सृष्टि का हर रहस्य उन्होंने उद्घाटित कर लिया है । सम्पूर्ण सृष्टि एक विशाल यन्त्र या मशीन की भांति है। उसके मूल तत्त्व हैं छोटे-छोटे अणु, विलियर्ड गेंद की भांति एकदम ठोस । ये अणु एक सर्वव्यापी ईथर में चक्राकार गति से घूमते रहते हैं । अणुओं की सभी गतियां पूर्णत: कार्य कारण के नियमों से नियमित रहती हैं। भौतिक- गणितीय संदर्भ में कुछ भी विसंगत, अव्यक्त, अव्यवस्थित या अतार्किक नहीं था । जगत् में सभी कुछ व्याख्येय था । प्रकृति के सभी नियम स्पष्ट व अटूट हैं। सभी कुछ एन्द्रियानुभविक (इम्पीरिकल ) था । बिना इन्द्रियों के किसी अन्य भविष्यबोध आदि की बातें केवल मूर्खतापूर्ण बकवास ही हो सकती थीं। परासामान्य को विज्ञान के क्षेत्र में कोई स्थान नहीं था । इस तरह उन्नीसवीं शताब्दी तक विज्ञान के विविध अन्वेषकों ने यह लगभग सिद्ध ही कर दिया था कि सारी सृष्टि सम्पूर्ण प्रकृति मात्र कुछ भौतिक शक्तियों की ही एक व्यवस्था है ।
अस्तु, एक ओर प्रैतिकवाद के उदय के साथ ही आत्मा, प्रेतात्मा, अतिजीवन, मृतात्मा - आवाहन व उनसे संदेश - प्राप्ति आदि से संबंधित घटनाओं की बाढ़ और उसके साथ-ही-साथ जैविक चुम्बकत्व, सम्मोहन, सुझावग्रहणशीलता
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