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________________ जैन दर्शन और परामनोविज्ञान ८७ कलघटगी ने तो इसके तार्किक प्रामाण्य को असंभव और अनपेक्षित माना है। उनके अनुसार यह विशिष्ट द्रष्टाओं के परम ज्ञान और अनुभूति के द्वारा व्यक्ति सिद्धांत है। पर डॉ. मेकटेगार्ट ने पुनर्जन्म की वास्तविकता को तार्किक आधारों पर प्रमाणित करने की चेष्टा की है। उनके अनुसार यदि यह सिद्ध हो जाता है कि वर्तमान जीवन के पूर्व और पश्चात् भी जीवन है, तो पूर्वजन्म के साथ अनश्वरता का सिद्धांत भी अपने आप सिद्ध हो जाता है। पुनर्जन्म के विपक्षियों द्वारा सबसे प्रबल तर्क यही दिया गया है कि पूर्वजन्म की कोई स्मृति हमें नही है। पिंगल-पेटिसन ने डॉ. मेकटेगार्ट की इस मान्यता को कि-"आत्मा एक शाश्वत द्रव्य है जिसमें त्रैकालिक अस्तित्व सदा अमर बना रहता है,'' समर्थ तर्काधारित मानने से इसलिए इनकार किया है कि पूर्वजन्म की स्मृति के अभाव में आत्मा की सततता की अतुभूति नहीं होती। यदि पूर्वजन्म की स्मृति वास्तविक तथ्य के रूप में प्रमाणित हो जाती है, तो र्जिन्म का सिद्धांत स्वत: सिद्ध हो जाता है। डॉ. कलघटगी ने पूर्वजन्म की स्मृति के प्रमाण को पुनर्जन्म की मान्यता को सिद्ध करने के लिए यथार्थ माना है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि पूर्वजन्म स्मृति वास्तविक अस्तित्ववादी (आस्तिक) दर्शन के लिए एक ऐसा सबल एवं प्रत्यक्ष प्रमाण बन जाता है जिसके लिए फिर तर्क या अनुमान की आवश्यकता नहीं रह जाती। वैज्ञानिक दृष्टि से विश्लेषण करने पर 'पुनर्जन्मवाद' का प्रामाण्य दो बातों, पर आधारित हो जाता है (१) पूर्वजन्म-स्मृति की घटनाएं वास्तविक हैं या नहीं, इसे प्रमाणित करना। (२) यदि ये घटनाएं वस्तुत: ही घटित हैं, तो इन घटनाओं की व्याख्या करने में पुनर्जन्मवाद की परिकल्पना ही केवल सक्षम है, इसे प्रमाणित करना। यदि इन दोनों बातों को सिद्ध कर दिया जाता है, तो आत्मा का स्वतंत्र एवं शाश्वत अस्तित्व एक वैज्ञानिक तथ्य के रूप में स्थित हो जाता है। परामनोविज्ञान पुनर्जन्म के विषय में वैज्ञानिक अनुसंधान का कार्य परामनोविज्ञान के क्षेत्र में किया गया है। इससे पूर्व कि परामनोविज्ञान के क्षेत्र में इस सम्बन्ध में क्या कार्य हुआ उसकी चर्चा करें, हम परामनोविज्ञान के इतिहास के विषय में पहले संक्षिप्त चर्चा कर लें ताकि वैज्ञानिक क्षेत्र में पुनर्जन्म, अतीन्द्रिय ज्ञान अतीन्द्रिय शक्ति आदि परासामान्य विषयों के अनुसंधान के क्रमिक विकास से हम परिचित हो सकें। परासामान्य घटनाओं के वैज्ञानिक अनुसंधान का प्रारम्भ "प्रजात्मा या "भूतावेश'' सम्बन्धी घटनाओं के अध्ययन से होता है । सन् १९५७ में The Book of the Spirits का प्रकाशन हुआ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
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