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जैन दर्शन और विज्ञान इसको अस्वीकार किया गया। ओरिजेन, संत आगस्तीन व असीसी के संत फ्रान्सिस ने फिर भी अपने ग्रंथो में इस विचार का समर्थन ही किया है।
इसी तरह, कुरान की निम्न आयों में भी पुनर्जन्म के विचार का समर्थन देखा गया है: “क्यों कुफ करते हो साथ अल्लाह के और थे तुम। मुर्दे पस जिलाया तुमको, फिर मुर्दा करेगा तुमको, फिर जिलाएगा तुमको, फिर उसके फिर जाओगे।" (सू. रू. ३, आयत ७)
“अल्लाह वह है जिसने पैदा किया तुमाको, रिज्क दिया तुमको फिर जिलायेगा तुमको।" (सू. ३०, रू. ४ आयत १३)
श्री ई. डी. वाकर ने अपनी पुस्तक 'रिइंकारनेशन' में लिखा है, "अरब दार्शनिकों का यह एक प्रिय सिद्धांत था और अनेक मुसलमान लेखकों की पुस्तकों में इसका उल्लेख अभी भी देखा जा सकता है।''२
प्राचीन यूनानी विचारक-विद्वान पाइथागोरस, सुकरात, प्लेटो, प्लूटार्क, प्लाटीनस आदि के विचारों में भी हमें "पुर्नजन्म की आस्था की स्पष्ट झलक मिलती है। पाश्चात्य विद्वानों ने पुनर्जन्म के लिए रिबर्थ, मैटमसाइकोसिस, ट्रांसमाइग्रेशन, पोलिजेनिसिस व रिएम्बाडीमेंट आदि विभिन्न शब्दों का कभी-कभी एक ही-कभी कुछ भिन्न-से अर्थों में प्रयोग किया है। पुनर्जन्म में विश्वास प्रकट करने वाले अन्य अनेक दार्शनिकों, लेखकों व कवियों मे स्पिनोजा, रूसो, शैनिंग, इमर्सन, ड्राडडन, वर्ड्सवर्थ, शैली व बाऊनिंग आदि की गणना की जा सकती है। जोसेफहीड व केंसटन ने सवा तीन सौ पृष्ठ की एक पुस्तक रिइंकारनेशन' में विश्व के विभिन्न धर्मों में व्याप्त दार्शनिकों, कवियों व वैज्ञानिकों आदि के पुनर्जन्म संबंधी विचारों का संकलन प्रस्तुत किया है।
वस्तुत: इतिहास के प्रत्येक युग में विश्व-भर के सभी दर्शनों-धर्मों में व जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में शीर्षस्थ स्थान रखने वाले व्यक्तियों के विचारों में पुनर्जन्म को महत्त्व दिया गया है।
तार्किक आधारों पर खण्डन-मण्डन का क्रम प्राचीन काल में ही नहीं, आधुनिक दार्शनिकों में भी चला है। आधुनिक पाश्चात्य दार्शनिक डॉ. मेकटेगार्ट जहां पुनर्जन्म के पक्षधर हैं, वहां पिंगल-पेटिसन आदि उनके विपक्षी हैं। डॉ. टी. जी. १. वैदरहेड, लेस्ली डी०, द् केस फॉर रीइंकारनेशन, बेलमॉन्ट, १९६३, पृ. ४ । २. वॉकर ई० डी०, रीइंकारनेशन-ए स्टडी ऑव फॉरगैटन टुथ', युनिवर्सिटी बुक्स, न्यूयार्क,
१९६५ । ३. हैड जॉसेफ. व क्रेन्सटन, एस. एल., 'रीइंकारनेशन-एन ईस्ट-वेस्ट एन्थोलॉजी द् जूलियन
प्रेस, न्यूयार्क, १९६१ ।
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