________________
जैन दर्शन और परामनोविज्ञान
८५
जाति-स्मरण ज्ञान की अगणित घटनाएं जैन साहित्य में उपलब्ध है । इसमें विशेषतः मेघकुमार (जो मगध- नरेश श्रेणिक बिम्बिसार का पुत्र था) को भगवान महावीर द्वारा जाति - स्मरण ज्ञान कराने की घटना उल्लेखनीय है । मेघकुमार को अपने पिछले जन्म में हाथी के जन्म की स्मृति हुई। उससे प्रेरित हो मेघकुमार प्रतिबुद्ध हुए । '
विभिन्न धर्म-दर्शनों में पुनर्जन्मवाद
प्रागैतिहासिक मानव सम्बन्धी खोजों से ज्ञात हुआ है कि आज से लगभग पचास हजार वर्ष पूर्व भी निअडंरथाल- मानव के मस्तिष्क में आत्मा की अमरता के बारे में कुछ अस्पष्ट से विचार अवश्य थे। मृतक को आदर पूर्वक खाने-पीने की अनेकानेक वस्तुओं सहित दफनाया जाता था ।
कुछ पाश्चात्य विद्वानों जैसे - वेबर, मैकडोनल व विंटरनिट्स आदि का मत है कि जन्म-जन्मांतर का ॠग्वेद में कहीं उल्लेख नहीं किया गया है व इस विचार का प्रवेश हिंदू-धर्म दर्शन में परवर्ती युग में हुआ है । किन्तु ऋग्वेद के अधिक गहन अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि आत्मा की अमरता व जन्मांतर आदि के बारे में मंत्रभाग में बीज रूप में जो विचार हैं वे ही ब्राह्मण आरण्यक व उपनिषदों में जाकर विकसित रूप में प्रस्फुटित हुए हैं। पुराणों, स्मृतियों, रामायण व महाभारत आदि ग्रंथों में तो पुनर्जन्म-संबंधी अनेकानेक विस्तृत उल्लेख मिलते ही हैं । बौद्ध धर्म में भी पुनर्जन्म के विषय में 'जातक' साहित्य उपलब्ध है ।
विश्व के अन्य दो प्रमुख धर्मों - ईसाई व इस्लाम के अनुयायी प्राय: पुनर्जन्म में आस्था नहीं रखते, किंतु यह उल्लेखनीय है कि बाइबिल व कुरान आदि ग्रन्थों में पुनर्जन्म-समर्थक विचारों की ओर अनेक आधुनिक विद्वानों ने ध्यान आकर्षित करते हुए यह दर्शाने का प्रयत्न किया है कि वास्तव में ये धर्म भी पुनर्जन्म के विचार के विरोधी नहीं है ।
अपनी एक पुस्तिका 'टू केस फार रिइंकारनेशन' में लेखक श्री लेस्ली डी वेदरहेड ने ईसाई मत के सन्दर्भ में इसी बात के स्पष्ट करते हुए लिखा है कि ईसा ने यद्यपि पुनर्जन्म का प्रत्यक्ष रूप से प्रतिपादन नहीं किया है, किन्तु साथ ही उन्होंने कभी इसका विरोध भी नहीं किया । वस्तुतः उनके समय में यहूदी धर्म में यह विचारधारा पहले से ही प्रचलित थी । प्राचीन चर्च पुनर्जन्म का समर्थक था - ईसा से ५५३ वर्ष बाद 'कांस्टनटिपोल' की सभा के बाद ही २ के विरोध में ३ मतों से
१. ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र, अध्ययन १ युवाचार्य महाप्रज्ञ कृत सम्बोधि । २. वैदरहेढ, लेस्ली डी०, द् केस फॉर रीइंकारनेशन', बेलमॉन्ट, १९६३ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org