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________________ समाधि की खोज : समस्या का जीवन ८७ है और एक दिन ऐसा आ सकता है कि एक भीषण विस्फोट होता है और आदमी उसे झेल नहीं पाता। जब चेतन मन जागत रहता है तब हमें समस्याओं का अनुभव ही नहीं होता। वास्तव में जब हम ध्यान-साधना के द्वारा चेतन मन को सुला देते हैं तब हमें ज्ञात होता है कि भीतर क्या-क्या है। जब तक सफाई का प्रयत्न नहीं किया जाता, तब तक कुछ भी पता नहीं लगता। समाधि है शोधन की प्रक्रिया ___ समाधि शोधन की प्रक्रिया है। जब यह प्रक्रिया चलती है तब शब्द जागते हैं, भावनाएं जागती हैं, ऐसे शब्द और ऐसी भावनाएं जिनकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। जो आदमी भला और सज्जन दिखायी देता रहा है, वह भी अचानक हिंसक और बेईमान हो जाता है। उसके मन में बुराई की भावना जागती है, हिंसा की बात उभरती है, आत्महत्या के विचार आते हैं, चोरी करने की भावना जागृत होती है। गृहस्थ में ही नहीं, साधु-संन्यासी में भी ऐसा परिवर्तन होता है। जब वह ध्यान की गहराइयों में जाता है तब संस्कार उभरते हैं और परिणामस्वरूप ये सारी वृत्तियां जाग जाती हैं। स्वयं के मन में इन वृत्तियों के प्रति ग्लानि होती है। वह सोचता है-अरे, यह क्या? मैंने कभी इन निम्न वृत्तियों को पोषण दिया ही नहीं, फिर ये क्यों उभर रही हैं ? ये वृत्तियां इसीलिए उभरती हैं कि उनके मूल संस्कार चेतना की गहराई में दबे होते हैं। ध्यान से वे जब छेड़े जाते हैं तब विपरीत भावनाएं आती हैं और व्यक्ति को बदल देती हैं। आंख बंद कर लेने मात्र से, केवल प्रतिसंलीनता का अभ्यास कर लेने से या प्रियता या अप्रियता की भावना को साध लेने से समस्या का समाधान नहीं होता। समस्या का समाधान तब होता है जब भीतर में रहे हुए शब्द, रूप, रस, गंध और स्पर्श के भंडार को रिक्त करना जान लें। जब रेचन करने की प्रक्रिया सीख ली जाती है तब वह भंडार खाली हो जाता है। यही निर्जरा की प्रक्रिया समाधि के लिए दो प्रक्रियाएं बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं। एक है-संवर की प्रक्रिया और दूसरी है-निर्जरा की प्रक्रिया। केवल संवर से पूरा समाधान नहीं होता। संवर से बाहर का आना बंद हो जाएगा किन्तु भीतर में अवस्थित संस्कारों का अटूट भंडार इससे रिक्त नहीं होगा। बाहरी तत्त्व पीड़ा पहुंचाना बन्द कर देंगे, पर भीतरी तत्त्व इतने जाग जाएंगे कि उनकी पीड़ा असह्य हो जाएगी। बाहर का शत्रु इतना खतरनाक नहीं होता जितना खतरनाक भीतर का शत्रु होता है। घर का शत्रु जितनी हानि पहुंचा सकता है उतनी हानि दूसरा कोई नहीं पहुंचा सकता। समाधि की अवस्था समाधि का अर्थ है-केवल चैतन्य का अनुभव । जब केवल चैतन्य का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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