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________________ २६ अप्पाणं सरणं गच्छामि भीतर प्रवेश करने दो। मन में जो विचार उठे, उन्हें रोको मत, उठने दो। बस, एक ऐसी चेतना जागृत करो कि वह जो कुछ आए उसका संवेदन न करे, केवल देखे, जाने, किन्तु उसके साथ प्रियता या अप्रियता को न जोड़े। चेतना को इतनी समतामय बना लें कि अच्छा आए तो भी स्वागत है और बुरा आए तो भी स्वागत है। कोई भी आए, सबका स्वागत है। किन्तु उससे कोई प्रयोजन नहीं। आने वाला आए और चला जाए, यह है-समता। यह है-समाधि का दूसरा बिन्दु। इस बिन्दु पर प्रियता या अप्रियता, मनोज्ञ या अमनोज्ञ, कुछ भी नहीं रहता। वस्तु वस्तुमात्र रह जाती है। चेतना चेतनामात्र रह जाती है। संवेदन संवेदनमात्र रह जाता है और ज्ञान ज्ञानमात्र रह जाता है। वहां ज्ञान संवेदन से प्रभावित नहीं होता और संवेदन की छाया में ज्ञान की ज्योति दबती नहीं, वह ऊपर दीप्त होती रहती है। वहां ज्ञान ऊपर रहता है और संवेदन नीचे। यह है समता की स्थिति। दो बातें हो गयीं। पहली बात है कि बाहर से कुछ लिया नहीं और दूसरी बात है कि बाहर से जो आया उसके साथ प्रियता या अप्रियता का संवेदन नहीं जोड़ा। परन्तु इन दोनों से भी समस्या का पूरा समाधान नहीं हुआ। भीतर का आक्रमण आंखें बन्द कर लीं। मन को एकाग्र करने का अभ्यास किया। सर्वेन्द्रिय-संयम मुद्रा कर बाहर से सम्बन्ध-विच्छेद कर डाला। अब बाहर से न शब्द आ रहा है, न रूप और रस आ रहा है। सब कुछ बंद है। किन्तु मस्तिष्क में लाखों-करोड़ों, असंख्य शब्द, रूप, गंध कैद किये हुए पड़े हैं। हजारों-लाखों वर्षों से यह क्रम चल रहा है। बाहर से एक बार बंद कर देते हैं किन्तु जब ये भीतर में संगृहीत शब्द-रूप उभरते हैं तब आदमी विस्मय से भर जाता है। जो व्यक्ति ध्यान से पूर्व स्थिर था, इतना चंचल नहीं था, वह एकाग्र होते ही इतना चंचल हो जाता है कि जिसकी कल्पना भी नहीं कर सकते। ध्यान दें। शब्द कहां से आ रहे हैं? बाहर का दरवाजा बन्द है। बाहर से कोई प्रवेश नहीं कर पाता। जब कोई बाहर से प्रवेश करता था, तब भीतर का सोया पड़ा था। जब बाहर से कोई नहीं आ रहा है तो भीतर वाले को जागने का अवसर मिल जाता है। जब चेतन मन जागता है, तब अवचेतन मन सोया रहता है। मनोविज्ञान की भाषा में कहा जाता है जब कांन्शस माइंड काम करता है तब सब-कॉन्शस माइन्ड काम नहीं करता। स्थानांगसूत्र का कथन है-जब संयमी जागता है तब उसके शब्द, रूप, रस, गंध और स्पर्श-ये पांच सोये रहते हैं। जब संयमी सोता है तब ये पांचों जाग जाते हैं। जब चेतन मन जागता है तब भीतर का तंत्र सोया रहता है। जब हम इस चेतन मन को सुला देते है तब भीतरी मन जाग जाता है। जब बाहरी मन जागता रहता है तब भीतर का भण्डार भरता जाता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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