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________________ समाधि की खोज समस्या का जीवन ८५ केवल योगी ही हो सकते हैं । वह एकान्त में या हिमालय पर जाकर ही साधी जा सकती है। लोग बड़ी बीमारी की चिकित्सा करना जानते हैं, पर छोटी बीमारी की चिकित्सा नहीं जानते । एक रोगी वैद्य के पास गया, बोला- मुझे सर्दी लग गयी है, दवाई दे दीजिए । वैद्य बोला- भाई ! मेरे पास सर्दी को मिटाने की कोई दवा नहीं है, किन्तु न्यूमोनिया की रामबाण दवा है । तुम तालाब पर जाओ। ठंडे पानी से स्नान करो। सर्दी बिगड़कर न्यूमोनिया बन जाएगी। फिर मेरे पास आना । मैं क्षण-भर में तुम्हें स्वस्थ कर दूंगा । न्यूमोनिया को मिटाने वाले लोग अनेक हैं, किन्तु सर्दी जैसी सामान्य बीमारी को मिटाने वाले लोग नहीं हैं। क्या साधारण रोग को बड़ा रोग बनाकर फिर चिकित्सा करें? क्या पहले बड़ी समस्याएं पैदा कर फिर समाधि की बात सोचें ? समाधि ऐसी नहीं है । समाधि न्यूमोनिया की रामबाण दवा नहीं है। हम समाधि के कुछेक बिन्दुओं पर ध्यान दें । समाधि के दो बिन्दु 1 समाधि का पहला बिन्दु है - प्रत्याहार, प्रतिसंलीनता । यह एक प्रकार का तप है । भगवान् महावीर की भाषा में जो प्रतिसंलीनता है वही महर्षि पंतजलि की भाषा में प्रत्याहार है । प्रत्याहार का अर्थ है-निरोध, अपने आप में गुप्त रहना । यदि समस्या का समाधान करना है, समाधि को प्राप्त होना है तो सबसे पहले हम इन्द्रियों के संवेदनों को बन्द करें। आंख, कान और नाक का संवेदन बन्द, त्वचा और जीभ का संवेदन बंद और मन के भावों का संवेदन भी बंद । बाहर से जो आ रहा है, वह सब बंद, यह समाधि का पहला बिन्दु है । बन्द करना समाधि का उपक्रम है। सारे दरवाजे बंद करना सीखें । परन्तु इसके साथ एक प्रश्न होता है कि खिड़कियों को बन्द कब तक रखा जाए? दुर्गन्ध आयी, खिड़की को बन्द कर दिया। दुर्गन्ध में कमी हो गयी, किन्तु साथ-साथ में अच्छी हवा भी बन्द हो गयी । कब तक बन्द रखें? क्या कोई व्यक्ति आंखें बन्द कर जी सकता है? क्या कोई व्यक्ति कानों को बन्द कर, बिना शब्द सुने जी सकता है ? क्या सरस भोजन करना सदा के लिए छोड़ दिया जाए? यह संभव नहीं है | दुनिया में जीना है तो सरसता भी चाहिए । इन्द्रियों को बन्द कर जीने में सारी सरसताएं समाप्त हो जाती हैं । सारा जीवन नीरस और भार बन जाता है । दुर्गन्ध को रोकने के लिए खिड़की बन्द की तो सुगन्ध भी भीतर नहीं आ पाएगी। बुरे के साथ अच्छे का भी निषेध हो जाएगा। इस प्रश्न को समाहित करने के लिए समाधि का दूसरा बिन्दु खोजा गया । समाधि का दूसरा बिन्दु है - समता । जो आता है, उसे आने दो । शब्द, रूप, रस और गन्ध जो भी आए, इन्द्रियां जो कुछ ग्रहण करें, उसे आने दो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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