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________________ ८८ अप्पाणं सरणं गच्छामि अनुभव होने लगता है तब भीतर के सारे शब्द, रूप बंद हो जाते है। तब न भीतर का शब्द सताता है और न भीतर का रूप सताता है। न शब्द की तरंग, नरूप की श्रृंखला, न गंध की लहर, न रस की अनुभूति और न स्पर्श का अनुभव। न संकल्प और न विकल्प। सब कुछ शांत, शांत और शांत । सारी तरंगें शांत, सारा तूफान और बवंडर शान्त । भीतर का सारा समुद्र शांत हो जाता है। उसमें कोई तरंग नहीं उठती। वह अथाह समुद्र शांत और निस्तरंग हो जाता है। यह है समाधि का चरम-बिन्दु । न बाहर का कोई शब्द सुनाई देता है और न भीतर से कोई शब्द की तरंग उठती है। न बाहर का कोई रूप दिखाई देता है और न भीतर से रूप की कोई कल्पना उभरती है। न कोई भाव बाहर से मन को उद्दीप्त करता है और न अन्तर में कोई संकल्प-विकल्प जागता है। बाहर से भी ये शब्द समाप्त और भीतर में भी ये शब्द समाप्त हो जाते हैं। केवल चेतना का समुद्र निस्तरंग और शांत-अवस्थित रहता है। यह है समाधि की अवस्था। समाधि है अप्रयत्न समाधि का अभ्यास एक प्रयत्न नहीं है, यह प्रयत्नों को छोड़ने का अभ्यास है। आदमी शरीर से बहुत प्रयत्न करता है। वह बोलने का प्रयत्न करता है, सोचने का प्रयत्न करता है और प्रयत्न करते-करते तनाव से भर जाता है। इन प्रयत्नों से मूर्छा होती है और आदमी की आंखें बंद हो जाती हैं। आंखें बंद होती हैं इसलिए आदमी जी रहा है। आंखें बंद न हों तो आदमी जी नहीं सकता। एक वकील के एक लड़की थी। वह कुरूप थी। कोई भी आंख वाला उसके साथ शादी करने के लिए तैयार नहीं होता। अंधे से उसकी शादी हो गयी। एक दिन एक डॉक्टर ने वकील से कहा-देखो, मैं तुम्हारे दामाद को आंखें दे सकता हूं। आप आज्ञा दें, मैं उसकी चिकित्सा कर दूं। वकील बोला-अंधा ही रहने दो। जिस दिन यह देखने लग जाएगा, शादी का अनुबंध टूट जाएगा। यह अंधा है इसीलिए मेरी कुरूप लड़की से शादी कर पाया है। इस संसार के प्रति आकर्षण, मोह और लगाव तब तक ही बना रह सकता है, जब तक हम आंखें बंद कर चलते हैं, अंधे होकर जीते हैं। जिस दिन आंख खुल जाएगी, रोशनी आ जाएगी, तब यह सारा लगाव एक झटके में ही टूट जाएगा। सारा सपना समाप्त हो जाएगा। एक दृष्टि से इस संसार में अंधे होकर जीने का भी एक अर्थ है। परंतु प्रश्न है कि आदमी अंधा होकर कब तक जीएगा? यदि आंखें खुलती हैं तो इस संसार से भी अधिक सुंदर संसार हमारे सामने होगा या हम एक सुंदर संसार का निर्माण कर सकेंगे। अब हम एक ऐसा प्रयत्न करें और प्रयत्नों को छोड़ने का प्रयत्न करें। मन, वाणी और शरीर को शान्त करें। कायोत्सर्ग करें और एकाग्र होने का उद्यम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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