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________________ प्रेक्षा एक चिकित्सा है मनोरोग की ७३ वियोग होता है तब दुःख होता है, पर यह क्यों होता है, क्यों तनाव बढ़ता है, यह हमें सोचना है। यह दुःख इसलिए होता है कि व्यक्ति संयोग को शाश्वत मानकर चलता है। वह अपनी उपयोगिता को ध्रुव सत्य मानकर चलता है। जो व्यक्ति हमारे लिए उपयोगी है, वह यदि चला जाता है तब दुःख अधिक होता है। दुःख इसलिए नहीं हुआ कि व्यक्ति चला गया, पर दुःख इसलिए हुआ कि उपयोगिता बन्द हो गई। व्यक्ति के चले जाने का दुःख नहीं होता। दुःख इसलिए होता है कि हमने उपयोगिता को शाश्वत मान लिया और यह मान लिया कि जो उपयोगिता आज है वह सदा के लिए बनी ही रहनी चाहिए। उस उपयोगिता में अन्तर आता है तो तत्काल मानसिक व्यथा का अनुभव होता पूर्ण सचाई : सापेक्ष सत्य ___ यदि हम सापेक्ष सत्य को स्वीकार कर चलें तो ये मनोव्यथाएं नहीं हो सकतीं। हम यह सोचे-समुदाय भी एक सचाई है और व्यक्ति भी एक सचाई है। अकेलापन भी एक सचाई है और समुदाय भी एक सचाई है। इन दोनों सचाइयों को सापेक्षता के आधार पर मानकर चलें तो हमारे निष्कर्ष बहुत सही होंगे। ऐसी स्थिति में मानसिक तनाव को उभरने का बहुत कम अवसर प्राप्त होगा। एक पिता अपने पुत्र को कोई आदेश देता है। पुत्र उसे स्वीकार नहीं करता तब पिता तत्काल तनाव से भर जाता है। वह सोचता है-मेरा बेटा मेरी बात नहीं मानता। यह विचार उसके लिए सबसे बड़ा सिर-दर्द बन जाता है। नौकर यदि आदेश न माने तो इतना तनाव नहीं होता, क्योंकि नौकर के प्रति यह भावना होती है कि वह पराया है, अपना नहीं है। आज है, कल उसे छोड़ा जा सकता है। 'पराये' की भावना में पीड़ा की तीव्रता इतनी नहीं होती जो 'अपने की भावना में होती है। जब मेरा बेटा, मेरी पत्नी, मेरा भाई, मेरी बहन कहना नहीं मानती तब मन में तनाव पैदा हो जाता है। पड़ोसी या रास्ते में मिलने वाला आदमी गालियां दे या तिरस्कार करे तो भी उतना तनाव पैदा नहीं होता। भाई भाई की अवज्ञा कर देता है तो जीवन-भर के लिए अलगाव की स्थिति आ जाती है। नौकर अवज्ञा कर दे तो कुछ हल्की-सी अनुभूति होती है। भाई के बिना भाई का काम चल सकता है। नौकर के बिना सेठ का और सेठ के बिना नौकर का काम नहीं चल सकता। समाज के क्षेत्र में एकत्व का आरोपण और एकत्व की सीमा में समाज का आरोपण करना सचाई को झुठलाना है। यह मानसिक तनाव पैदा करता है। इस तनाव को मिटाने के लिए गोलियां पर्याप्तनहीं हैं। जब तक भ्रान्तियां नहीं टूटेगी, सचाई की अनुप्रेक्षा नहीं होगी, तब तक इस तनाव का कोई उपचार नहीं होगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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