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________________ ७२ अप्पाणं सरणं गच्छामि मानसिक तनाव बड़ी बीमारी नहीं है। यह स्वयं बीमारी नहीं है, बीमारी का वंश है। बीमारी है सत्य को झुठलाने की मनोवृत्ति। जब हम सत्य को झुठलाते हैं तब मानसिक तनाव पैदा हो जाता है। जब-जब मनुष्य ने सत्य को झुठलाया है तब-तब उसने मनोव्यथाओं को भोगा है, मानसिक यातनाओं और पीड़ाओं को भोगा है। सत्य को झुठलाने की मनोवृत्ति बनती है निरपेक्षता के द्वारा। हमारा स्वभाव ही ऐसा एकांगी बन गया कि हम एक बात को पकड़कर चलते हैं, सर्वांगीण सत्ता को देखना नहीं चाहते। हम निरपेक्षता की पगडंडी पर चलना पसन्द करते हैं, किन्तु सापेक्षता के राजपथ पर चलना पसन्द नहीं करते। एकत्व अनुप्रेक्षा हम अनेक अनुप्रेक्षाओं का प्रयोग करते हैं। उनमें एक अनुप्रेक्षा है- एकत्व अनुप्रेक्षा। एकत्व सचाई है। किन्तु मनुष्य ने इसको झुठलाने का जितना प्रयत्न किया, उतना प्रयत्न शायद किसी और दिशा में नहीं किया। झुठलाने का प्रयत्न निरंतर चलता रहा और वह प्रयत्न चलते-चलते आज इस बिन्दु पर पहुंच गया कि समाज ही परम सत्य या ध्रुव सत्य बन गया। आदमी ने मान लिया कि समाज ही अन्तिम सत्य है, व्यक्ति तो समाज का एक पुर्जा मात्र है। एक महायन्त्र का छोटा-सा पुर्जा है व्यक्ति। इसके अतिरिक्त व्यक्ति का कोई अस्तित्व ही नहीं है। इस मान्यता ने व्यक्ति के स्वतंत्र अस्तित्व को ही समाप्त कर डाला। व्यक्ति की स्वतंत्रता पर भारी कुठाराघात हुआ। क्या व्यक्ति का कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है? क्या व्यक्ति समाज का एक पुर्जा मात्र है? जब व्यक्ति समाज का पुर्जा ही है तब फिर समाज के द्वारा जो प्राप्त होता है उसे सहर्ष स्वीकार करना चाहिए। किन्तु कठिनाई यह है कि समाज से जो सहर्ष उपलब्ध होता है उसे व्यक्ति स्वीकार नहीं करता। तत्काल उसका मानसिक तनाव बढ़ जाता है। वह भीतर में अनुभव करता है-मैं व्यक्ति हूं। मेरी स्वतन्त्र सत्ता है। मेरा स्वतंत्र अस्तित्व है। एक ओर स्वतंत्र अस्तित्व की बात मन से निकलती नहीं, दूसरी ओर सामुदायिकता का सघन सूत्र उसके सिर पर थोपा जाता है। इन दोनों स्थितियों के बीच सारे तनाव बढ़ते चले जाते हैं। संयोग-वियोग : अधूरा सच व्यक्ति ने संयोग को इतना सत्य मान लिया कि उसे लगता ही नहीं कि संयोग से परे भी कोई सचाई है। एक घटना घटी। एक व्यक्ति मर गया। उम्र छोटी थी। सारा परिवार दुःखी हो गया। सारे परिवार के लोग मानसिक व्यथा के शिकार हो गए। उस व्यथा ने सारा व्यापार चौपट कर डाला। एक व्यक्ति के जाने मात्र से परिवार के दसों व्यक्ति इतने पीड़ित हो गए कि उनका दुःख कभी कम नहीं हुआ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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