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९. प्रेक्षा एक चिकित्सा है मनोरोग की
प्रेक्षा-ध्यान के लिए उपस्थित साधक एक प्रकार की चिकित्सा का प्रयोग कर रहे हैं। सब अपनी-अपनी चिकित्सा कर रहे हैं। कोई डॉक्टर नहीं है। अपनी चिकित्सा अपने आप जितनी अच्छी होती है, दूसरे के द्वारा की जाने वाली चिकित्सा उतनी अच्छी नहीं होती। एक व्यक्ति और दूसरे व्यक्ति के बीच में बहुत बड़ा व्यवधान होता है। जहां व्यवधान होता है, वहां दूसरों को नहीं समझा जा सकता। हमारा अपना भी व्यवधान है, पर औरों से बहुत कम। बहुत कम दूरी है। दूसरे की दूरी बहुत बढ़ जाती है। अध्यात्म और मानस के क्षेत्र में स्वयं की चिकित्सा स्वयं के द्वारा ही की जा सकती है, किसी दूसरे के द्वारा नहीं। व्यक्ति स्वयं ही अपनी चिकित्सा कर सकता है और स्वयं ही स्वास्थ्य को उपलब्ध हो सकता है।
चिकित्सा से पूर्व बीमारी को जानना जरूरी होता है। बीमारी क्या है ? दुनिया में सदा एक प्रश्न उभरता रहा है-सबसे बड़े का। हम किसी भी क्षेत्र में जाएं, पहला प्रश्न होगा-सबसे बड़ा कौन है? साहित्य में ऐसे सैकड़ों प्रश्न पूछे जाते रहे हैं सबसे बड़ा रस क्या है? सबसे मीठा क्या है? सबसे बड़ा पाप क्या है? सबसे बड़ा धर्म क्या है? सबसे बड़ा गुण क्या है? सबसे बड़ा दोष क्या है? इसी संदर्भ में हम समझें कि सबसे बड़ी बीमारी क्या है? छोटी-छोटी बीमारियों की चिकित्सा करते रहेंगे तो एक बीमारी शान्त होगी और दूसरी उभर आएगी। एक की चिकित्सा करेंगे तो दूसरी सताने लग जाएगी। दूसरी की चिकित्सा करेंगे तो तीसरी सताने लग जाएगी। इसका कहीं अन्त नहीं होगा। कब तक करते रहेंगे? इसका समाधान यह है कि हम उस बीमारी की चिकित्सा करें जिस बीमारी के समाप्त होने पर सब बीमारियां अपने आप समाप्त हो जाएं। एक कहावत है-चोर को मारने की अपेक्षा चोर की मां को ही मार डालना श्रेयस्कर है। क्योंकि चोर की मां के समाप्त होने पर चोर स्वयं समाप्त हो जाते हैं। हम बड़ी बीमारी की चिकित्सा करें जिससे कि छोटी बीमारियां अपने आप शांत हो जाएं। प्रश्न एक ही रहता है-बड़ी बीमारी है क्या? उस बीमारी की खोज हमें स्वयं करनी है। सबसे बड़ी बीमारी है-सचाई को झुठलाने की मनोवृत्ति। मनुष्य सत्य को झुठलाने और नकारने का प्रयत्न करता है। वह सत्य को सीधा स्वीकार नहीं करता। यह बीमारी अन्यान्य बीमारियों को जन्म देती है। आज के मानसिक चिकित्सक से पूछा जाए कि सबसे बड़ी बीमारी क्या है तो वह कहेगा-मानसिक तनाव सबसे बड़ी बीमारी है। मैं इस भाषा में नहीं सोचता।
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