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________________ ७० अप्पाणं सरणं गच्छामि ऋजुता : शुद्धि की साधना भगवान् महावीर ने कहा- 'सोही उज्जुयभूयस्स' - शुद्धि उसकी होती है जो ऋजु होता है, सरल होता है। क्राइस्ट की भाषा में - बच्चे जैसा । भारतीय परम्परा में विशुद्धि के लिए प्रायश्चित्त का कथन किया गया है । प्रायश्चित्त की पहली शर्त है कि व्यक्ति बच्चे जैसा सरल होकर अपने दोषों को गुरु के समक्ष रखे। यह है आलोचना । बच्चों की तरह सरल होकर बिना कुछ छिपाए, गुरु को सब कुछ कह देना ही आलोचना है । फिर गुरु जाने । तुम्हें कोई चिन्ता नहीं । कुछ भी छिपाओगे तो शल्य रह जाएगा। शुद्धि नहीं होगी। जो अपने ज्ञान को छिपाता है, दुर्बलता और कमजोरी को छिपाता है, उसकी शुद्धि नहीं हो सकती। जिसकी शुद्धि नहीं हो सकती उस आत्मा में धर्म नहीं टिक सकता । ऋजु आत्मा शुद्ध होती है और शुद्ध आत्मा में ही धर्म टिकता है । हम प्रेक्षा ध्यान के द्वारा धर्म की आराधना करें, अन्तःकरण को शुद्ध करें और ऋजुता को उपलब्ध हों। जैसे-जैसे ऋजुता बढ़ेगी वैसे-वैसे छिपाने की वृत्ति कम होगी और तब हम अपनी कमजोरियों का तीव्रता से अनुभव करेंगे, उनको स्वीकार करने में नहीं हिचकेंगे। ऐसी स्थिति में ही प्रेक्षा ध्यान का महत्त्व जीवन में अवतरित होगा और हम अज्ञान की भूमिका से हटकर ज्ञान की सीमा में प्रवेश पा सकेंगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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