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________________ देखो और बदलो ३६ में रहते हैं या अन्यान्य गृहस्थी के कार्यों में संलग्न रहते हैं तब हमारा मन इधर-उधर नहीं भटकता, किन्तु ज्योंही हम ध्यान करने या उपासना करने बैठते हैं तब मन भटकने लग जाता है। तब हमें चंचलता का अनुभव होता है। इस विषय में हम बहुत भ्रांत हैं। जब व्यक्ति घर में या दुकान में होता है, जुआ खेलता है या गप्पें करता है तब वह चंचल ही होता है। उस समय चंचलता का क्या पता चले? जब व्यक्ति स्थिर होता है तब उसे भयंकर चंचलता का ज्ञान होता है। चंचल अवस्था में चंचलता का क्या पता चले? कीचड़ में फंसने का आभास उसे नहीं होता जो सदा कीचड़ में ही फंसा रहता है। कीचड़ में फंसने का आभास उसे होता है जो कीचड़ में नहीं फंसा है, पर फंसने की-सी नौबत आती है। चंचलता को देखें आत्मा के द्वारा आत्मा को देखने का पहला अर्थ होगा कि आत्मा के द्वारा अपनी चंचलता को देखें। जब व्यक्ति स्थिर होकर चंचलता को देखता है तब उसे इधर-उधर होने वाले दर्द की अनुभूति होती है। यह जागृत अवस्था है। सुषुप्त अवस्था में दर्द की अनुभूति नहीं होती। चंचलता में दर्द की अनुभूति नहीं होती, स्थिरता में वह होती है । दर्पण में क्षमता है कि वह प्रतिबिम्ब को ग्रहण कर सकता है। किन्तु प्रतिबिम्ब तब आता है जब वह स्थिर होता है। जब दर्पण हिलता रहता है तब उसमें कोई प्रतिबिम्ब नहीं आता। जब हम मन और शरीर को स्थिर कर देखते हैं तब ज्ञात होता है कि भीतर कितनी चंचलता है। आत्मा चंचलतामय बनी हुई है। वह स्थिरता को नहीं चाहती। आत्मा के द्वारा आत्मा को देखने का अर्थ है-अपनी चंचलता को देखना। चंचलता को देखने का अर्थ है-आत्मा को देखना यानी योग आत्मा को देखना। आठ आत्माओं में एक आत्मा है-योग आत्मा। योग को देखना, प्रवृत्ति को देखना, कर्म को देखना, अपनी चंचलता को देखना है-यह है आत्मा के द्वारा आत्मा को देखने का पहला अर्थ। चंचलता का जनक : कषाय ___ आत्मा के द्वारा आत्मा को देखने का दूसरा अर्थ है कि चंचलता पैदा करने वाली आत्मा को देखना। जब मन शांत होता है तब ध्यान में स्थिरता शीघ्र ही आ जाती है। जब मन चंचल होता है तब स्थिरता प्राप्त नहीं होती। चंचलता पैदा क्यों होती है? एक आदमी शांत है। किसी ने उसको कह दिया-तुम निकम्मे हो, अहंकारी हो। तुमने सारा वातावरण बिगाड़ डाला। उन वाक्-प्रहारों को सुनकर जब व्यक्ति ध्यान करने बैठता है तब उसका मन स्थिर हो ही नहीं सकता। वह भले ही आसन लगाकर बैठे, आंखें बन्द कर ले, सुझावों के अनुसार ध्यान करने का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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